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Written By DW

डायबिटीज के मरीज को मिलेगा इंसुलिन से छुटकारा

डायबिटीज के मरीज को मिलेगा इंसुलिन से छुटकारा -
डायबिटीज को आम तौर पर एक असाध्य रोग माना जाता है, लेकिन जर्मनी में इस बीमारी पर नए तरीके का शोध कार्य चल रहा है। संभावना है कि भविष्य में डायबिटीज का इलाज हो सकेगा वह भी बिना इंसुलिन के।

डायबिटीज, जिसे हिंदी में मधुमेह कहते हैं, शरीर की चयापचय क्रिया में गड़बड़ी आ जाने की कई बीमारियों का सामूहिक नाम है। मुख्य सामूहिक लक्षण है पेशाब के रास्ते से शक्कर का जाना, यानी पेशाब का मीठा हो जाना। भारत में पेशाब की जगह पर चींटियाँ जमा हो जाने से लोग इस की पहचान करते थे। इसे एक असाध्य रोग माना जाता है, लेकिन जर्मनी में इसे साधने के एक बिल्कुल नए तरीके पर शोधकार्य चल रहा है।

बर्लिन के एक उपनगर बूख में जर्मन शोध संस्था हेल्महोल्त्स सोसायटी के अधीन एक ऐसी पंचवर्षीय परियोजना पर काम चल रहा है, जिस का लक्ष्य है मधुमेह के उपचार की एक नईविधि विकसित करना।

इटली की डॉ. फ्रांचेस्का स्पियानोली इस शोधकार्य की संचालक हैं। वह जानने की कोशिश कर रही हैं कि क्या लीवर, यानी यकृत की कोषिकाओं को ऐसी तथाकथित बीटा कोषिकाओं में बदला जा सकता है, जो अन्यथा केवल पैंक्रियास में मिलती हैं।

पैंक्रियास को हिंदी में अग्न्याशय कहते हैं। वह हमारे पेट में यकृत के पास की एक रसस्रावी ग्रंथि है। उस के दो मुख्य काम हैं। एक है ऐसे पाचक रस पैदा करना, जो भोजन में निहित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा को इस तरह खंडित करें कि बाद में हमारी आँते उन्हें सोख सके और दूसरा है, कुछ एक हार्मोन पैदा करना, जिन में इंसुलिन सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अग्न्याशय की जो बहुत ही विशिष्ट कोषिकाएँ इंसुलिन बनाती हैं, उन्हें ग्रीक वर्णमाला के बीटा अक्षर का नाम दिया गया है। मधुमेह का अर्थ है कि बीटा कोशिकाएँ काम नहीं कर रही हैं। अग्न्याशय में इंसुलिन नहीं बन रहा है। उसे अलग से लेना पड़ रहा है। इंसुलिन वह हार्मोन है, जो शारीरिक ऊर्जा के मुख्य स्रोत ग्लूकोज को जलाकर उसे ऊर्जा में बदलता है।

डॉ. स्पियानोली लिवर यानी यकृत की कुछ कोषिकाओं की कार्यप्रणाली को जीन इंजीनियरिंग की सहायता से इस तरह बदलना चाहती हैं कि इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोषिकाओं का काम वे करने लगें। तब इंसुलिन एक बार फिर शरीर के भीतर ही बनने लगेगा, उसे बाहर से नहीं लेना पड़ेगा।

स्पियानोली कहती हैं, 'हम समझना चाहते हैं कि वे कौन से जीन हैं, जो अग्न्याशय की कोषिकाओं को बीटा कोषिकाओं में बदलने के लिए जिम्मेदार होते हैं। दूसरे शब्दों में, हम मधुमेह के रोगी की बेकार हो गयी बीटा कोषिकाओं की जगह लेने वाली ई कोषिकाएँ बनाने का रास्ता पाना चाहते हैं।'

अग्न्याशय की इंसुलिन निर्माता बीटा कोषिकाएँ एकबार बेकार, क्षतिग्रस्त या नष्ट हो जाने पर दुबारा नहीं बनतीं। कोषिका प्रतिरोपण या अग्न्याशय प्रतिरोपण भी सफल नहीं हो पाता। इसलिए डॉ. फ्रांचेस्का स्पियानोली यकृत की कुछ कोषिकाओं को ही जीन तकनीक द्वारा बीटा कोषिकाओं में बदलने का रास्ता ढूँढ रही हैं।

वे कहती हैं, 'हम जानना चाहते हैं कि किसी यकृत कोषिका को इंसुलिन पैदा करने वाली बीटा कोषिका में कैसे बदला जा सकता है। हम यकृत की कुछ कोषिकाएँ लेंगे। उनके जीनों को फिर से प्रोग्रैम करेंगे ओर उन्हें अग्न्याशय के बदले यकृत में ही दुबारा प्रतिरोपित करेंगे। यानी तब यकृत ही इंसुलिन भी पैदा करने लगेगा।'

डॉ. स्पियानोली बताती हैं कि ऐसा इसलिए संभव होना चाहिए, क्योंकि यकृत और अग्न्याशय काफी मिलती-जुलती कोषिकाओं के बने होते हैं। दोनों भ्रूण अवस्था वाले एक ही हिस्से की स्टेम कोषिकाओं से विकसित होते हैं। उस अवस्था में लौटने का एक रास्ता यह हो सकता है कि यकृत की वयस्क कोषिकाओं की पीछे की ओर प्रोग्रैमिंग द्वारा पहले उन्हें आरंभिक कोषिका में बदला जाए और तब बीटा सेल बनने दिया जाए।

यदि ऐसा नहीं हो पाता तो तो दूसरा रास्ता हो सकता है यकृत की वयस्क कोषिका को सीधे-सीधे बीटा कोषिका बनने के लिए फिर से प्रोग्रैम करना। दोनों विकल्पों के लिए डॉ. स्पियानोली को पहले यह जानना होगा कि कब और कौन-सा संकेत एक जैसी मूल कोषिकाओं को विकास की दो अलग अलग दिशाओं में जाते हुए एक तरफ यकृत और दूसरी तरफ अग्न्याशय की कोषिकाओं का रूप लेने का आदेश देता है।

यदि उन्हें यह कुंजी मिल जाती है, तो संसार के करोड़ों मधुमेह पीड़ितों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेने से छुटकारा दिलाने का ताला भी खुल जाएगा। मधुमेह मीठा हो जाएगा।

- राम यादव