सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूँ
रिश्ते को जड़ से उखाड़कर फेंक देना मुश्किल हैकाट देना सहज है बहुतजड़ें तो रहती है आत्मा की जमीन मेंऔर इसी में बचा रहता हैरिश्ते का खंडित अंशजो व्यथित होकरअपने अस्तित्व के लिए चीखता है पुकारता है किकोई इसे पुनर्जीवित कर खड़ा कर देऔर यकीन मानो किमैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूँ तुमसे टूटे हुए रिश्ते के खंडित टुकड़े की मर्मांतक चीख को नहींक्या तुममें भी कहीं कोई टुकड़ा शेष बचा है....?सिर्फ एक शब्द में प्यार ? से ज्यादा कुछ नहीं।