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ले चल प्यार की नगरिया
जब भी रूठती थी मैं तो मनाते थे तुम अपने हाथों से इन जुल्फों को सजाते थे तुम अब रूठी हूँ तो न आए तुम कहाँ हो तुम कुछ पता नहीं हमने प्यार किया है कोई गुनाह नहीं गुँजती है तेरी आवाज मेरे कानों में आज भी कैद है वो मंजर इन फिजाओं में हर कोई मिला यहाँ पर न मिला तेरे जैसा कोई तेरे सपनों में मैं हर दिन, हर रात रहती हूँ खोई-खोईअब और ना सता मुझको करती हूँ याद तुझको प्यार की नगरिया में फिर से ले चल मुझको।