रात तेरी याद में आँख से आँसू गिरे
दिलशाद जाफरी खुशबू को फूल, तस्वीर को चेहरा समझता थातुम्हारे दो घड़ी के साथ को, दुनिया समझता थादिखा था भीड़ में मुझको तमाशबीनों की तरहएक वो चेहरा जिसे मैं अपना समझता थाएहसास में ज़ख्म खाता रहा, मुस्कुराता रहादूसरों के प्यार पर अपना हक़ समझता था हाँ सच है तेरे लिए मैं उम्रभर रोता रहालेकिन मुझे शायद कोई सपना समझता थादर्द को दर्द ही के एहसास से मारा गयाआख़िर वो ज़ख्म भी भरा जिसे मैं गहरा समझता थारात तेरी याद में आँख से दो आँसू गिरेएक वो दामन भीग गया जिसे अपना समझता थाजल गया वो दिल, शाद था शायद कभीतू बता क्या तू उसे अपना समझता था।