खुशबू बनकर आए थे तुम खुशियों की मधुमास बन छाए थे तुम तुम्हें पाकर होता था मुझे पूर्णता का अहसास अब नहीं रही थी मन में मेरे कोई अधूरी आस
मेरे हर बहते आँसू को लगाया था तुमने अपने गालों से मेरे बालों में खिलता गुलाब सजाया था तुमने अपने हाथों से
दी थी इतनी खुशियाँ जो झोली से बिखर-बिखर आती प्यार के इस बहते समंदर में हमारी प्रेम की नैया हिचकोले खाती
वक्त बदला और तुम भी बदल गए दूरियों की गर्मी से बर्फ की तरह क्या हमारे रिश्ते पिघल गए? अब क्यों मेरे रूठने पर तुम्हें मनाना नहीं आता आखिर कैसे मुझे देखे बगैर तेरा दिन है गुजर जाता
जो रखता था पलकों पर आज छोड़ जाता है बीच बाजार में। क्या यही सिला दिया जाता है प्यार में? क्या यही सिला ...