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बैठ पीपल छाँव...
श्रीकांत प्रसाद सिंहबैठ पीपल छाँव में, मन!साँवरी! तुमको पुकारे!बाँस-वन के झुरमुटों मेंबाग-बागिन खेलते फिर,चीखता है - एक तोता!सुधि-घटा आई उमड़ घिर!नील नभ में दूर उड़-उड़चील डैनों को पसारे! खेत गेहूँ के कटे सब,मौन सूनापन लहकता!यह हवा फुफकारती है - मन अकेला तड़प उठता!पास आकर एक मैना-एक टक मुझको निहारे!फुदकती चंचल गिलहरी-पास आ-आ भाग जाती,झाड़ियों में सो रही है -टिटहरी जो रात गाती।मन-पपीहा चिर विकल हो - सोचता, कोई दुलारे?