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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 19 जुलाई 2024 (09:55 IST)

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा, मिलेगा संतान सुख और अखंड सौभाग्य का वरदान

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा, मिलेगा संतान सुख और अखंड सौभाग्य का वरदान - Vijaya Parvati Vrat katha 2024
Jaya Parvati Vrat
 
Highlights 
 
विजया पार्वती व्रत की कथा यहां पढ़ें।
विजया पार्वती व्रत की कथा कौनसी हैं।
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी की कहानी।
Vijaya parvati vrat 2024 : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन जया/ विजया-पार्वती व्रत किया जाता है। यह व्रत 5 दिनों तक यानी शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से शुरू होकर श्रावण मास के कृष्ण पक्ष तृतीया तक चलता है। इस बार इस व्रत की शुरुआत 19 जुलाई से होकर 24 जुलाई को इसकी समाप्ति होगी। 
विजया पार्वती व्रत कथा- Vijaya Parvati Vrat Katha
 
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौंडिल्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे। एक दिन नारद जी उनके घर पधारें। 
 
उन्होंने नारद की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारद जी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगस्वरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी। 
 
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने उस शिवलिंग की ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए। एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में गिर गया। 
 
ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया। ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। 
 
तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कहीं। आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपत्ति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया, तब उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। अत: यह व्रत बहुत अधिक महत्व का होने के कारण इस दिन व्रत करने वालों को संतान की प्राप्ति तथा अखंड सौभाग्य बना रहता है।
 
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