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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (15:31 IST)

मत्स्य जयंती : श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा किस तरह अब्राहमिक धर्मों में बदलती गई

मत्स्य जयंती : श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा किस तरह अब्राहमिक धर्मों में बदलती गई - Story of vaivasvata manu and  matsya avatar
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक मत्स्य अवतार है। मत्स्य अवतार की यह कथा हमें दुनिया के सभी धर्मों के शास्त्रों में मिलती है। पुराणों अनुसार यह बात हजारों वर्ष पुरानी है जबकि धरती पर राजा प्रियवत का शासन था जिन्हें सत्यव्रत भी कहते थे। प्रलय से बचने के बाद इन्हें ही वैवस्वत मनु भी कहा जाने लगा। हिंदू धर्म ग्रंथों में वर्णित यह कथा हमें अब्राहमिक धर्मों में भिन्न रूप में मिलती है। यह कथा हमें मत्स्य पुराण में पढ़ने को मिलती है।
 
दक्षिण भारत की मान्यता और उत्तर भारत की मान्यता अनुसार मत्स्य जयंती अलग-अलग तिथि को मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र में शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। 
 
हिंदू पुराणों के अनुसार यह एक प्राकृतिक जल प्रलय थी : पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को जल प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। इसकी कथा इस प्रकार है- कृतयुग यानी सतयुग के प्रारंभ में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नानकर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आ गई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस नदी में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे नदी में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई।
 
राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद जल प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। मैं उस नाव को खिंचकर सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटी तक ले जाऊंगी। तुम उस चोटी से नाव को बांध लेना। इस दौरान प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्य पुराण नाम से प्रसिद्ध है। भगवान ने प्रलय समाप्‍त होने पर वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्‍यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्‍त हो वैवस्‍वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला।
 
अब्राहमिक धर्मों की कथा : 
उतना पिष्तिम : सबसे पहले यह कहानी सुमेरियम सभ्यता की एपिक पोयम 'एपिक ऑफ गिल गमेश' में मिलती है। मेसोपोटामिया के एक राजा उतना पिष्तिम पर लिखी गई है। इस कहानी के अनुसार सभी महान देवता अनु, एनलिन, निनुरता, एनोगी और इये भूमि पर पाप बढ़ जाने पर नाराज हो जाते हैं और तब वे पूरी दुनिया को तबाह करना चाहते हैं, लेकिन देवता इये ये सारी योजना राजा उतना पिष्तिम को बता देता है। तब इये के कहने पर राजा उतना पिष्तिम एक कश्ती बनवाता है जिसमें वह हर तरह के जानवरों का एक जोड़ा बिठाता है। इसी तरह ये लोग सैलाब से बच जाते हैं। यह कहानी असल में 1800 ईसा पूर्व लिखी गई थी।
 
उपरोक्त कहानी ही 600 ईसा पूर्व लिखी गई तौरात में लिखी हुई मिलती है। इसके बाद यह कहानी हमें हिब्रू बाइबल में पढ़ने को मिलती है। बाइबल में इस बड़े सैलाब की का समय करीब 2345 ईसा पूर्व का बताया जाता है। मत्स्य पुराण, तौरात, बाइबल और कुरआन में इस कहानी के मायने बदलते हैं। मत्स्य पुराण में यह एक प्राकृतिक प्रलय है, जबकि अन्य में यह ईश्‍वर का प्रकोप।
हजरत नूह की नौका : हजरत नूह ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर हैं। राजा मनु की यह कहानी यहूदी, ईसाई और इस्लाम में 'हजरत नूह की नौका' या 'तूफान-ए-नूह' नाम से वर्णित की जाती है। उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ।
 
सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा। धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया। यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए। केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए। जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा। फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई।
 
तूफान-ए-नूह : कुरआत में 'सूर ए नूह' नाम से एक अलग सूरा है। इस्लामिक रिवायत के मुताबिक हजरत नूह ने लोगों को ये बताया कि कैसे शैतान ने उन्हें बुतपरस्त करके लंबे समय तक धोखा दिया था। इस धोखे को रोकने का वक्त आ गया है। कहते हैं कि हजरत नूह ने सैंकड़ों वर्ष तक लोगों को अल्लाह के आजाब के बारे में बताया। नूह ने लोगों को जहन्नुम की आग के बारे में भी बताया। कुछ लोगों ने उनकी बातें नहीं मानी तो उन्होंने अल्लाह से आजाब यानी सैलाब लाने की दुआ की। उनकी दुआ कबूल हुई और अल्लाह ने नूह से लकड़ी एवं औजारों के साथ एक बड़ी कश्ती बनाने को कहा। जब कश्ती बनई गई तो नूह ने उनके मानने वालों को कश्ती में सवार होने को कहा। इस तरह से सभी मुस्लिम और जानवरों के जोड़े कश्ती पर सवार होकर सैलाब से बच गए और अल्लाह ने सभी काफिरों को सैलाब से मार दिया।

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