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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025 (08:23 IST)

छत्रपति शिवाजी महाराज कैसे बने श्री तुलजा भवानी के उपासक, क्या आज भी है इस शक्तिपीठ का महत्व?

कहां है श्री तुलजा भवानी मंदिर, जानिए क्या हैं इस मंदिर की रहस्यमयी विशेषताएं

छत्रपति शिवाजी महाराज कैसे बने श्री तुलजा भवानी के उपासक, क्या आज भी है इस शक्तिपीठ का महत्व? - shivaji maharaj tulja bhavani story tulja bhavani mandir Maharashtra
shivaji maharaj tulja bhavani story : भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज केवल एक वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि महान रणनीतिकार और धर्मपरायण राजा के रूप में भी जाने जाते हैं। उनकी विजय यात्राओं, युद्धनीतियों और प्रशासनिक कुशलता की जितनी चर्चा होती है, उतनी ही महत्वपूर्ण है उनकी अपार आस्था और भक्ति। शिवाजी महाराज मां तुलजा भवानी के अनन्य उपासक थे, जिनकी कृपा से उन्होंने अपने साम्राज्य की स्थापना की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह वही मंदिर है, जहां मां भवानी ने स्वयं शिवाजी को तलवार भेंट की थी? क्या आज भी यह मंदिर उतना ही प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है? आइए, इस पावन स्थल की विशेषताओं और इसके ऐतिहासिक महत्व पर एक नजर डालते हैं।
 
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के तुलजापुर में स्थित तुलजा भवानी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह मराठा इतिहास की गौरवशाली विरासत का भी प्रतीक है। कहा जाता है कि जब शिवाजी महाराज ने मुगलों और आदिलशाही सुल्तानों के खिलाफ स्वतंत्र हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का संकल्प लिया, तब उन्होंने मां भवानी की विशेष साधना की। मां तुलजा भवानी उनकी कुलदेवी थीं और वह नियमित रूप से इस मंदिर में दर्शन करने आते थे।
 
किंवदंतियों के अनुसार, एक बार जब शिवाजी महाराज अपने शत्रुओं से घिरे हुए थे और उनके पास कोई उपाय नहीं बचा था, तब उन्होंने श्री तुलजा भवानी का आह्वान किया। मां ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि वे विजय प्राप्त करेंगे। यही नहीं, मां भवानी ने उन्हें एक दिव्य तलवार भी प्रदान की, जिसे "भवानी तलवार" कहा जाता है। इस तलवार के साथ शिवाजी ने कई ऐतिहासिक युद्ध जीते और मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
 
महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में स्थित, तुलजापुर एक ऐसा स्थान है जहां छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी का मंदिर हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर महाराष्ट्र के सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां मां भवानी की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, यानी यह मूर्ति प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई थी। मंदिर का स्थापत्य मूल रूप से हेमदपंथी शैली से प्रभावित है। इस मंदिर के शिवलिंग की ओर स्थापित चांदी के छल्ले वाले स्तंभों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है, तो सात दिन लगातार इस छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है।
 
मंदिर में देवी के दर्शन तीन रूपों में होते हैं- महिषासुर मर्दिनी, तुलजा भवानी और बाला भवानी। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, विशेषकर वे जो शक्ति और विजय की कामना रखते हैं। शिवाजी महाराज को मिली भवानी तलवार की यादें आज भी इस मंदिर में जीवित हैं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जहां लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। 
 
तुलजा भवानी का यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह शौर्य, भक्ति और मराठा गौरव का प्रतीक भी है। जो भी व्यक्ति शक्ति, साहस और सफलता की प्रार्थना लेकर आता है, उसे मां भवानी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। आज भी महाराष्ट्र और भारत के कोने-कोने से लोग यहां दर्शन करने आते हैं, खासकर वे लोग जो शिवाजी महाराज से प्रेरित हैं। चाहे कोई बिजनेस शुरू कर रहा हो, परीक्षा की तैयारी कर रहा हो या किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा हो, मां तुलजा भवानी के दर पर आकर हर भक्त को ऊर्जा और शक्ति मिलती है। 


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