Assam hidden gem shivsagar : असम, जिसे अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है, यहां एक ऐसा मंदिर स्थित है, जो शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। शिव डोल/शिव दौल मंदिर नॉर्थईस्ट का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है और हर साल हजारों श्रद्धालु महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां पहुंचते हैं। यह विशाल शिव मंदिर असम के शिवसागर जिले में स्थित है। यहां का वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और यह स्थान अपनी दिव्यता के कारण भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
नॉर्थईस्ट का सबसे ऊंचा शिव मंदिर : यह मंदिर न केवल असम बल्कि पूरे नॉर्थईस्ट भारत का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। इसकी ऊंचाई और भव्यता इसे एक विशिष्ट धार्मिक स्थल बनाती है। मंदिर की वास्तुकला अत्यंत आकर्षक है और इसकी ऊंची संरचना इसे अन्य शिव मंदिरों से अलग बनाती है। यहां पर भगवान शिव की भव्य प्रतिमा स्थापित है, जिसे देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
शिवदौल मंदिर असम के शिवसागर जिले में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो अपने तीन भव्य मंदिरों और एक संग्रहालय के लिए प्रसिद्ध है। असमिया भाषा में दौल शब्द का अर्थ मंदिर होता है, यह मंदिर समूह शिवसागर तालाब (जिसे 'बरपुखुरी' भी कहा जाता है) के किनारे बसा हुआ है, जो इसकी खूबसूरती और धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है। इस परिसर में तीन प्रमुख मंदिर स्थित हैं - शिवदौल (भगवान शिव को समर्पित), विष्णुदौल (भगवान विष्णु का मंदिर) और देवीदौल (देवी दुर्गा का मंदिर)। इन प्राचीन मंदिरों की भव्यता और ऐतिहासिकता हर साल हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है। शिवदौल का निर्माण वर्ष 1734 में रानी फुलेश्वरी द्वारा कराया गया था, जिसे बाद में रानी अंबिका (मदाम्बिका) ने पूर्ण कराया। मंदिर का शिखर एक 8 फीट ऊंचे स्वर्ण कलश (डोम) से सुशोभित है, जो इसकी दिव्यता को और बढ़ाता है। इस ऐतिहासिक मंदिर की कुल ऊंचाई 180 फीट और चौड़ाई 195 फीट है।
महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन : महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव डोल मंदिर श्रद्धालुओं से खचाखच भर जाता है। इस दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तजन दूर-दूर से भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर प्रांगण में भव्य भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण का आयोजन होता है, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। साथ ही, यहां पर विशेष रुद्राभिषेक और महाप्रसाद वितरण की भी व्यवस्था की जाती है।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व : इस मंदिर का इतिहास सदियों पुराना माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह स्थान शिवभक्तों के लिए हमेशा से ही एक तीर्थस्थल रहा है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना किसी महान संत या ऋषि द्वारा की गई थी, जिन्होंने भगवान शिव की आराधना में अपना जीवन समर्पित कर दिया था। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में शिव के दर्शन करने से उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और वे मानसिक शांति प्राप्त करते हैं।
अद्भुत वास्तुकला : इस भव्य मंदिर के पास ही देवी दोल और विष्णु दोल नामक दो अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी स्थित हैं, जहां देवी दुर्गा और भगवान विष्णु की भव्य प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर हिंदू देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी देखने को मिलती है, जो इसकी वास्तुकला को और भी आकर्षक बनाती है। यहां का सबसे प्रमुख पर्व महाशिवरात्रि है, जब देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस पावन स्थल की यात्रा करने के लिए आते हैं। धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक महत्व के कारण यह स्थान असम के प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है।
कैसे पहुंचे मंदिर तक : यहां दर्शन करने का सबसे अच्छा समय ठंड मौसम में है। शिवसागर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोरहाट एयरपोर्ट (JRH) है, जो लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एयरपोर्ट कोलकाता, गुवाहाटी और नई दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से सिवसागर पहुंचने के लिए आप टैक्सी या बस की सुविधा ले सकते हैं। शिवसागर से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित सिमलुगुरी जंक्शन (Simaluguri Junction) इस क्षेत्र का मुख्य रेलवे स्टेशन है। यह भारत के प्रमुख शहरों से रेल नेटवर्क द्वारा जुड़ा हुआ है। सिवसागर नेशनल हाईवे 37 के माध्यम से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए बस, टैक्सी और निजी वाहन का उपयोग किया जा सकता है। सड़क मार्ग से यात्रा करने पर आप रास्ते में असम की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली का आनंद भी ले सकते हैं।
आज भी इस मंदिर में नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे यह आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में गिने जाने वाले इस स्थल में कई दुर्लभ मूर्तियां मौजूद हैं, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शाती हैं।
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