51 Shaktipeeth: भारत का बंगाल शाक्त धर्म का प्रमुख स्थान रहा है। बंगाल का विभाजन होने के बाद पश्चिम बंगाल में 12 और बांग्लादेश में करीब 5 शक्तिपीठ हैं। इस तरह यदि हम संपूर्ण बंगाल की बात करें तो 51 में से 17 शक्तिपीठ से अधिक हो सकते हैं जबकि अकेले पश्चिम बंगाल में 12 प्रमुख शक्तिपीठ हैं। हालांकि इनमें से कई शक्तिपीठ नहीं भी हो सकते हैं क्योंकि जहां जहां माता के अंग गिरे वहां शक्तिपीठ बने, जहां रक्त गिरा वहां रक्तपीठ बने और जहां वस्त्र और आभूषण गिरे उन्हें उप शक्ति पीठ माना गया है। आओ जानते हैं पश्चिम बंगाल के 12 शक्तिपीठों की संक्षिप्त जानकारी।
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1. कालीपीठ कोलकता कालिका शक्तिपीठ: मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। मां काली के चार रूप है- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। पश्चिम बंगाल कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं। इसे दक्षिणेश्वर काली मंदिर कहते हैं।
2. नंदीपूर- नंदिनी: पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। इसकी शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं। माता को वागरी भाषा में नंदोर बोला जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के हिसाब से नंदनी माता द्वापर युग में यशोदा की बेटी थी, जो कंस से मारी गई थी। इनका उल्लेख दुर्गा सप्तमी में मिलता है।
3. अट्टहास- फुल्लरा: पश्चिम बंगाल के लाभपुर (लाबपुर या लामपुर) स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के अधरोष्ठ (नीचे के होठ) गिरे थे। इसकी शक्ति या सति को फुल्लरा और भैरव या शिव को विश्वेश कहते हैं। यह शक्तिपीठ वर्धमान रेलवे स्टेशन से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है।
4. वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी: पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।
5. रत्नावली कुमारी: रत्नावली शक्तिपीठ का निश्चित्त स्थान अज्ञात है फिर भी बताया जाता है कि बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं। बंगाल पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में कहीं पर स्थित है। हालांकि बहुत से लोग इसकी स्थिति बंगाल में ही मानते हैं।
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6. विभाष- कपालिनी: पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास कुड़ा स्टेशन से 24 किलोमीटर दूर ताम्रलुक ग्राम (तामलुक) स्थित विभाष स्थान पर रूपनारायण नदी के तट पर माता की बाएं टखने का निपात हुआ था। रूपनारायण नदी के तट पर स्थित वर्गभीमा का विशाल मन्दिर ही विभाष शक्तिपीठ है। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और शिव को शर्वानंद कहते हैं।
7. कांची- देवगर्भा: पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।
8. किरीट- विमला भुवनेशी शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला और शिव को संवर्त्त कहते हैं। अर्थात यहां की सती विमला अथवा भुवनेश्वरी हैं तथा शिव हैं संवर्त। कुछ विद्वान् मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।
9. युगाद्या- भूतधात्री शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम (क्षीरग्राम) स्थित जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर तंत्र चूड़ामणि के अनुसार माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है युगाद्या या भूतधात्री और शिव को क्षीर खंडक (क्षीर कण्टक) कहते हैं। क्षीरग्राम की भूतधात्री महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाली मूर्ति एक हो गई।
10. त्रिस्रोता- भ्रामरी शक्तिपीठ: भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और शिव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं। भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी के रूप में जाना जाता है। देवी महात्म्य में उनका उल्लेख मिलता है। देवी भागवत पुराण में संपूर्ण ब्रह्मांड के जीवों के लिए उसकी महानता दिखाई गई और उनकी सर्वोच्च शक्तियों का वर्णन मिलता है।
11. बहुला- बहुला (चंडिका): भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर कटआ के पास केतुग्राम के निकट अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ या भुजा गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं। केतुग्राम के देवत्व की अध्यक्षता करने वाली देवी बाहुला को कार्तिक और गणेश के रूप में देखा जाता है।
12. नलहाटी- कालिका तारापीठ: पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटी स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं। हालांकि एक अन्य मान्यता अनुसार तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा, एकजटा और नील सरस्वती।