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Mandir Mystery : मां ज्वालादेवी के चमत्कार को देखकर दंग रह गया था अकबर

Mystery of jwala devi temple himachal
नमस्कार! 'वेबदुनिया' के मंदिर मिस्ट्री चैनल में आपका स्वागत है। आप जानते ही हैं कि भारत में सैकड़ों चमत्कारिक और रहस्यमय मंदिर हैं। उनमें से कुछ मंदिरों को आपने देखा भी होगा। तो चलिए इस बार हम आपको बताते हैं भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित ज्वालादेवी मंदिर के रहस्य को। आपको भी इसके रहस्य को जानकर आश्चर्य होगा। तो आओ जानते हैं कि क्या है इसका रहस्य?

 
सतयुग में बने इस मंदिर का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
 
1. 51 शक्तिपीठों में से ज्वालादेवी मंदिर : भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में जहां माता सती की जीभ गिरी थी, उसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं।
 
2. ज्वाला रूप की पूजा : इस मंदिर में माता के मूर्तिरूप की नहीं बल्कि ज्वाला रूप की पूजा होती है, जो हजारों वर्षों से प्रज्वलित है। यहां प्रज्वलित ज्वाला चमत्कारिक मानी जाती है। इस स्थान से आदिकाल से ही पृथ्वी के भीतर से 9 अग्निशिखाएं निकल रही हैं। ये ज्वालाएं 9 देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी का ही स्वरूप हैं।
 
3. अकबर ने काट दी थी ध्यानू के घोड़े की गर्दन : हजारों वर्षों से यहां स्थित देवी के मुख से 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हो रही हैं। ऐसी जनश्रु‍ति है कि माता का भक्त ध्‍यानू हर वर्ष जत्थे के साथ यहां की यात्रा करता था। एक बार अकबर ने उसे वहां जाने से रोक दिया और ध्यानू के घोड़े का सिर काटकर कहा कि यदि तुम्हारी माता सच्ची होगी तो इसका सिर जोड़ देंगी।
 
4. माता ने जिंदा कर दिया घोड़े को : ऐसे में ध्यानू ने अकबर से कि कहा मैं आपसे एक माह तक घोड़े की गर्दन और धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना करता हूं। अकबर ने ध्यानू की बात मान ली। बादशाह से अनुमति लेकर ध्यानू मां के दरबार में जा बैठा। स्नान, पूजन आदि करने के बाद रातभर जागरण किया। प्रात:काल ध्यानू ने हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना की और कहा हे मां! अब मेरी लाज आपके ही हाथों में है। कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए मां ने घोड़े को पुन: जिंदा कर दिया।
 
5. अकबर ने ज्वाला को बुझाने का किया था प्रयास : घोड़े को जिंदा देखकर अकबर हैरान रह गया। तब उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की ओर चल पड़ा। अकबर ने माता की परीक्षा लेने या अन्य किसी प्रकार की नीयत से उस स्थान को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया। सबसे पहले उसने पूरे मंदिर में अपनी सेना से पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला नहीं बुझी। कहते हैं कि तब उसने एक नहर खुदवाकर पानी का रुख ज्वाला की ओर कर दिया तब भी वह ज्वाला नहीं बुझी।
 
6. सोने का छत्र नहीं किया माता ने स्वीकार : कई प्रयासों के बाद भी जब ज्वाला नहीं बुझी तो अकबर को यकीन हो गया कि यहां जरूर कोई न कोई शक्ति विराजमान है। तब उसने वहां सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र गिरकर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आप आज भी अकबर का चढ़ाया वह छत्र ज्वाला मंदिर में देख सकते हैं। हालांकि कई इतिहासकार मानते हैं कि अकबर ने कोई छत्र वगैर नहीं चढ़ाया था। वह तो मंदिर को ध्‍वस्त करके निकल गया था। बाद में सरकार ने छत्र चढ़ाकर अकबर को महान बताने का षड़यंत्र रचा था। ताकि हिंदुओं के मन में मुसलमानों के प्रति अच्छे भाव रहे। यह अकबर की क्रूरता को दबाने का प्रयास था। 
 
7. इंद्र की पत्नी शचि ने की थी माता की तपस्या : स्कन्दपुराण के अनुसार सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शचि ने देवराज इन्द्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ज्वालाधाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की थी। मां पार्वती ने शचि की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन दिए और शचि की मनोकामना पूर्ण की।
 
8. सतयुग में बना था यह मंदिर : कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यहां भव्य मंदिर बनवाया था। बाद में इस स्थान की खोज पांडवों ने की थी। इसके बाद यहां पर गुरु गोरखनाथ ने घोर तपस्या करके माता से वरदान और आशीर्वाद प्राप्त किया था। सन् 1835 में इस मंदिर का पुन: निर्माण राजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने करवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
 
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