पाकिस्तान में यहां शिव जी के आंसू से बना था अमृत कुंड, जानिए कटासराज शिव मंदिर का अद्भुत इतिहास
katas raj mandir Pakistan: पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले में, एक ऐसा प्राचीन और पवित्र स्थल है जो सदियों से हिन्दू आस्था और इतिहास का साक्षी रहा है। यह है कटास राज शिव मंदिर। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक महत्व और अटूट आस्था का प्रतीक है। हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के कारण भारतीय हिंदुओं के लिए यहाँ तक पहुँचना अक्सर एक कठिन यात्रा बन जाती है, फिर भी यह मंदिर पौराणिक मान्यता के कारण हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है ।
क्या है कटास राज शिव मंदिर का इतिहास?
कटास राज मंदिर परिसर कई छोटे मंदिरों का समूह है, जो भगवान शिव को समर्पित हैं। इसका इतिहास कई हज़ार साल पुराना माना जाता है, और यह हिंदू धर्म के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है। 'कटास' शब्द संस्कृत के 'कटाक्ष' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'आँखों से आँसू'। यह नाम इस मंदिर के साथ जुड़ी सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा से आता है।
शिव जी के आँसू से बने कटास कुंड की पवित्र कहानी
इस प्राचीन मंदिर परिसर के केंद्र में एक पवित्र झील है जिसे कटास कुंड के नाम से जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुंड में स्वयं को भस्म कर लिया था, तब भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए थे। उनके दुख और क्रोध से निकले आँसुओं की दो बूंदें पृथ्वी पर गिरीं – एक बूंद राजस्थान के पुष्कर में गिरी, जिससे पुष्कर झील बनी, और दूसरी बूंद कटास में गिरी, जिससे यह पवित्र कटास कुंड का निर्माण हुआ। माना जाता है कि इस कुंड का जल अमृत समान पवित्र है और इसमें स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। इसी कारण इसे अमृत कुंड भी कहा जाता है।
कटास राज का ऐतिहासिक और शैक्षिक महत्व
पौराणिक महत्व के साथ-साथ, कटास राज का एक समृद्ध ऐतिहासिक और शैक्षिक इतिहास भी है।
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पांडवों का निवास: मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान कुछ समय कटास राज में बिताया था। यहाँ एक कुआँ भी है, जिसे 'पांडवों का कुआँ' कहा जाता है, जहाँ से वे पानी पीते थे।
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आदि शंकराचार्य का संबंध: यह भी माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इस स्थान पर शिक्षा दी थी और कुछ समय बिताया था। यह उस समय हिंदू शिक्षा और दर्शन का एक प्रमुख केंद्र था।
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ऐतिहासिक साक्ष्य: चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा वृत्तांतों में इस स्थान का उल्लेख किया है, जिससे इसकी प्राचीनता और महत्व प्रमाणित होता है।
भारत के विभाजन से पहले, यह मंदिर हिंदुओं के लिए एक जीवंत तीर्थ और सांस्कृतिक केंद्र था। हालांकि विभाजन के बाद भी यह पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
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