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Last Updated : शनिवार, 2 नवंबर 2019 (18:23 IST)

भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी की नगरी वैशाली

vaishali nagar | भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी की नगरी वैशाली
बिहार में एक जिला है जिसका नाम वैशाली है। विश्‍व को सर्वप्रथम गणतंत्र का पाठ पढ़ने वाला स्‍थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्‍तर पर जिस लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है वह यहां के लिच्छवी शासकों की ही देन है। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्‍छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। यहां का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता था। 
 
प्राचीनकाल में वैशाली बहुत ही समृद्ध क्षेत्र हुआ करता था। कहा जाता है कि इस नगर का नामकरण राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण के अनुसार यहां पर लगभग 34 राजाओं ने राज किया था। पहले नभग और अंतिम सुमति थे। राजा सुमति भगवान राम के पिता राजा दशरथ के समकालीन थे।
 
 
बौद्धकाल में यह नगरी जैन और बौद्ध धर्म का केंद्र थी। यह भूमि महावीर स्वामी की जन्मभूमि और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि है। इसी नगर क्षेत्र के बसोकुंड गांव के पास कुंडलपुर में जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। भगवान महावीर वैशाली राज्य में लगभग 22 वर्ष की उम्र तक रहे थे। यहां कई अशोक स्तंभ के अलावा कुछ बौद्ध स्तूप है और यही 4 किलोमीटर दूर कुंडलपुर में जैन मंदिर भी स्थित हैं।
 
 
ज्ञान प्राप्ति के पांच वर्ष पश्‍चात भगवान बुद्ध का वैशाली आगमन हुआ और उनका स्वागत वहां की प्रसिद्ध राजनर्तकी आम्रपाली ने किया था। इसी नगर में वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू आम्रपाली सहित चौरासी हजार नागरिक बौद्ध संघ में शामिल हुए थे। बुद्ध ने तीन बार इस जगह का दौरा किया और यहां काफी समय बिताया। बुद्ध ने यहां अपने निर्वाण की घोषणा भी की थी। वैशाली के समीप कोल्‍हुआ में भगवान बुद्ध ने अपना अंतिम संबोधन दिया था। वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में ही बौद्ध धर्म में दो फाड़ हो गई थी।
 
 
मगध सम्राट बिंबसार ने आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर जब आक्रमण किया तब संयोगवश उसकी पहली मुलाकात आम्रपाली से ही हुई। आम्रपाली के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर बिंबसार पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठा। माना जाता है कि आम्रपाली से प्रेरित होकर बिंबसार ने अपने राजदरबार में राजनर्तकी के प्रथा की शुरुआत की थी। बिंबसार को आम्रपाली से एक पुत्र भी हुआ जो बाद में बौद्ध भिक्षु बना।