शरद पूर्णिमा : पढ़ें पौराणिक कथा
आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा या कोजागिरी पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इस साल शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को मनाई जा रही है। इसे कोजागिरी पूर्णिमा व्रत, रास पूर्णिमा या कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।
इस दिन चन्द्रमा व भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी का पूजन, व्रत कथा पढ़ी जाती है। धर्मग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं शरद पूर्णिमा की पौराणिक एवं प्रचलित कथा-
शरद पूर्णिमा की पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार एक साहुकार को 2 पुत्रियां थीं। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी।
उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़े) पर लेटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी, तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा।
तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।