Premanand ji maharaj satsang: आजकल हर घर में थोड़ा-बहुत खाना बच ही जाता है। कभी दाल ज्यादा बन जाती है, तो कभी रोटियां। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस जूठे बचे हुए खाने का क्या किया जाए? क्या इसे कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए? या इसका कोई और बेहतर उपयोग हो सकता है? आइए, इस विषय पर प्रेमानंद महाराज के विचारों को जानते हैं और कुछ व्यावहारिक सुझावों पर गौर करते हैं। प्रेमानंद महाराज अक्सर अपनी कथाओं और प्रवचनों में सात्विक जीवनशैली और जीवों के प्रति करुणा का महत्व बताते हैं। उनके अनुसार, अन्न ब्रह्म है और इसका अनादर करना उचित नहीं है। जूठे बचे हुए भोजन को फेंक देना एक प्रकार से अन्न का अपमान है। तो फिर, इसका सही उपयोग क्या है?
पक्षियों को खिला दें: प्रकृति का पोषण
प्रेमानंद महाराज अक्सर कहते हैं कि प्रकृति के हर जीव में परमात्मा का अंश है। पक्षी, जो सुबह-सुबह अपनी मधुर चहचहाट से हमारे दिन की शुरुआत करते हैं, वे भी इसी सृष्टि का अभिन्न अंग हैं। जूठे बचे हुए चावल, रोटी के छोटे टुकड़े या अन्य अनाज के अंश आप बालकनी या छत पर पक्षियों के लिए डाल सकते हैं। यह न केवल उन छोटे जीवों का पेट भरेगा, बल्कि आपको भी एक अद्भुत संतोष का अनुभव होगा। उनकी चोंच से दाना चुगने की क्रिया देखना मन को शांति प्रदान करता है।
पशुओं को दे दें: मूक जीवों की सेवा
हमारे आसपास कई ऐसे पशु घूमते रहते हैं जो भोजन की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं। गाय, कुत्ते या अन्य बेसहारा जानवरों को यदि आप अपना बचा हुआ जूठा खाना देते हैं, तो यह उनके लिए किसी अमृत से कम नहीं होगा। प्रेमानंद महाराज का मानना है कि हर जीव को जीने का अधिकार है और हमारी छोटी सी पहल किसी भूखे जीव की जान बचा सकती है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आप उन्हें ऐसा भोजन न दें जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो, जैसे कि अत्यधिक मसालेदार या तला हुआ भोजन।
अपना जूठा खाना किसी मनुष्य को ना दें
प्रेमानंद महाराज इस बात पर विशेष जोर देते हैं कि अपना जूठा भोजन कभी भी किसी मनुष्य को नहीं देना चाहिए। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला, यह स्वच्छता के दृष्टिकोण से उचित नहीं है और इससे संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। दूसरा, यह मानवीय गरिमा का भी उल्लंघन है। हर व्यक्ति को स्वच्छ और ताजा भोजन प्राप्त करने का अधिकार है। किसी को भी अपना इस्तेमाल किया हुआ भोजन देना अपमानजनक हो सकता है।
खाना उतना ही प्लेट में लें जितना खा सकें:
सबसे उत्तम उपाय तो यही है कि हम उतना ही भोजन अपनी थाली में परोसें जितना हम खा सकते हैं। प्रेमानंद महाराज अक्सर कहते हैं कि भोजन की बर्बादी एक बहुत बड़ा पाप है। यह न केवल अन्न का अनादर है, बल्कि उन लाखों लोगों के प्रति भी असंवेदनशीलता है जिन्हें एक वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता। इसलिए, हमें हमेशा यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी थाली में उतना ही भोजन लेंगे जितना हम आसानी से समाप्त कर सकें।
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