आइए यहां जानते हैं होली-धुलेंडी पर्व के बारे में आश्चर्यजनक बातें...
होलिका दहन के बारे में जानें :
- प्रतिवर्ष होलिका दहन फाल्गुन मास, शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा की रात्रि को किया जाता है।
- इस दिन होलिका का दहन हुआ था, तथा विष्णुभक्त प्रहलाद जीवित बच गए थे, अत: यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- इस दिन लोग जगह-जगह पर लकड़ियों और उपलों से बनी होली जलाते हैं।
- साथ ही लोग गेहूं और चने की बालियां होलिका की अग्नि में भूनते हैं और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
- होलिका दहन के समय लोग 'होलिका माता की जय' और 'बुराई पर अच्छाई की जीत' के नारे लगाते हैं।
- कई जगहों पर होली की राख को घर में लाया जाता है, और वर्षभर संभाल कर रखा जाता हैं, जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है।
अब धुलेंडी के बारे में जानते हैं:
- होली के अगले दिन धुलेंडी मनाई जाती है यानी रंगों की होली मनाई जाती है।
- धुलेंडी रंगबिरंगी रंगों से खेलने वाला त्योहार है।
- जिस घर में गमी हुई हो, उस घर में जाकर परिवारजन तथा पड़ोसी, मित्र आदि लोग गुलाल लगाते हैं।
- इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाल और रंगों से सराबोर कर देते हैं।
- लोग ढोल बजाकर होली के गीत गाते हैं और घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाते हैं।
- धुलेंडी पर लोग एक-दूसरे को गले मिलकर होली की शुभकामनाएं देते हैं।
- कई जगहों पर धुलेंडी के दिन भांग और ठंडाई का सेवन किया जाता है।
होलिका दहन और धुलेंडी के बीच अंतर जानें: होलिका दहन की विशेषता यह हैं कि यह फाल्गुन पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। और धुलेंडी होलिका दहन का अगला दिन होता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत तो धुलेंडी रंगों का त्योहार है। पूर्णिमा के दिन होली जलाना, प्रसाद ग्रहण करना
आदि रीति-रिवाजों के संग यह त्योहार मनाया जाता है और धुलेंडी एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाना, गीत गाना तथा उत्साह और उमंग का त्योहार है तो होलिक दहन धार्मिक वातावरण निर्मित करके जीवन में शांति लाता है।
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