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Last Modified: शनिवार, 24 दिसंबर 2016 (22:02 IST)

रिफ्यूजियों के मुद्दे ने फिर जान फूंकी अलगाववादियों में

रिफ्यूजियों के मुद्दे ने फिर जान फूंकी अलगाववादियों में - रिफ्यूजियों के मुद्दे ने फिर जान फूंकी अलगाववादियों में
8 जुलाई को बुरहान वानी की मौत के बाद जो हड़ताली कैलेंडर कश्मीर में ताल ठोंक रहा था, अब उससे लोग उकताने लगे थे। दुखी कश्मीरियों के दवाब के आगे हुर्रियती नेताओं ने इस कैलेंडर में ढील देना आरंभ किया ही था कि राज्य सरकार के फैसले ने उनके आंदोलन में फिर से नई जान फूंक दी।
 
दरअसल अब हुर्रियत नेता पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजियों को मिलने वाले डोमिसाइल सर्टिफिकेट के फैसले को लेकर आंदोलन आरंभ कर चुके हैं। इन रिफ्यूजियों को 70 साल के बाद राज्य की नागरिकता देने का फैसला हुआ था, पर यह किसी को गंवारा नहीं हुआ। यही कारण था कि पीडीपी और भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दल इस फैसले के विरोध में उठ खड़े हुए तो अलगाववादियों को भी लगने लगा कि वे अब इस मुद्दे पर कश्मीर को भड़का सकते हैं।
 
उन्होंने अपनी कारस्तानी शुरू भी कर दी है। कल कामयाब हड़ताल इस मुद्दे पर हो चुकी है। आगे की रणनीति बनाने की तैयारियां चल रही हैं। इस मुद्दे पर कम से कम 6 माह और कश्मीर को आग में झौंकने की जो रणनीति और तैयारियां हो रही हैं उसमें पास्तिान भी अपना तड़का यह कह कर लगा रहा है कि भारत सरकार कश्मीर की डेमोग्राफी  को बदलने की कोशिश में है। ऐसा ही आरोप अन्य राजनीतिक दल भी लगा रहे हैं।
 
रिफ्यूजियों के मुद्दे को लेकर हालांकि प्रत्यक्ष रूप से पीडीपी और भाजपा एकसाथ खड़ी है पर अंदरूनी हालात यह हैं कि पीडीपी के कई नेता इसका विरोध कर रहे हैं। जब पीडीपी सत्ता से बाहर थी तो वह इसका विरोध करती रही और सत्ता में होते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस मुहिम का कभी विरोध नहीं किया था।
 
इस मुद्दे पर राज्य के हालात यह हैं कि जहां कश्मीर में रिफ्यूजियों को लेकर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन आरंभ हो चुके हैं वहीं जम्मू में इन रिफ्यूजियों द्वारा भी अपने हक की मांग को लेकर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। विशेषकर वे राजनीतिक दलों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
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