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  4. Tiger hunted deranged on the National Highway adjacent to Corbett Tiger Reserve, dragged the dead body into the forest
Written By एन. पांडेय
Last Modified: मंगलवार, 13 दिसंबर 2022 (18:15 IST)

Tiger Attack : कार्बेट टाइगर रिजर्व से सटे नेशनल हाइवे पर बाघ ने किया विक्षिप्त का शिकार, जंगल में खींच ले गया शव

Tiger
नैनीताल। Corbett Tiger Reserve Tiger Attack : कार्बेट टाइगर रिजर्व से सटे नेशनल हाइवे के धनगढ़ी में बाघ ने एक व्यक्ति पर हमला करके उसे अपना ग्रास बना लिया। बाघ शव को जंगल खींच ले गया। जंगल में छानबीन के दौरान 15 घंटे बाद उसका आधा खाया हुआ शव हाईवे से 100 मीटर नीचे जंगल से बरामद हो पाया। मृतक को मानसिक तौर पर विक्षिप्त बताया जा रहा है। सोमवार शाम 6 बजे लोगों ने हाइवे पर रामनगर के अंतर्गत धनगढ़ी से एक किलोमीटर दूर कपड़े पड़े देखे। 
 
तलाशी अभियान में मिला शव : उस क्षेत्र में बाघों की सक्रियता होने से बाघ द्वारा हमला किए जाने का अंदेशा व्यक्त होने पर कार्बेट के निदेशक धीरज पांडेय रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ कुंदन कुमार के निर्देशन में दोनों विभागों की संयुक्त टीमों ने रात में ही हाईवे के नजदीक छानबीन की।

अंधेरा होने के कारण तलाशी अभियान को रोककर मंगलवार सुबह फिर दोबारा छानबीन की गई। सुबह 9 बजे एक शव रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत कोसी रेंज के जंगल में कोसी नदी के समीप से बरामद हो गया। उसका एक पैर बाघ ने खा लिया था। 
 
वनाधिकारियों का कहना है कि सोमवार शाम को विक्षिप्त व्यक्ति मोहान वन चौकी पर घूम रहा था। उसे कुछ लोगों ने वापस लौटा दिया था, लेकिन जंगल के नजदीक चले जाने पर उसे बाघ ने अपना निवाला बना लिया। इससे पहले भी बाघ सड़क पर घूम रहे विक्षिप्तों को अपना शिकार बना चुका है।

हालांकि उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष में सबसे ज्यादा सक्रियता गुलदार यानी तेंदुए की होती है, लेकिन बाघ के हमले भी इस बीच काफी तेजी से बढ़े हैं। 
 
6 गुना बढ़े हमले : उत्तराखंड राज्य विधानसभा में एक सवाल के उत्तर में राज्य सरकार की ओर से दिए आंकड़े में बताया गया है कि पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष राज्य में बाघों के हमलों में मारे गए लोगों की संख्या 6 गुना ज्यादा है। इस वर्ष अब तक यानी नवंबर अंत तक राज्यभर में बाघों के हमले में 11 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि वर्ष 2021 में राज्य में बाघों ने केवल 2 लोगों को मारा था।

2020 में एक भी व्यक्ति बाघ का शिकार नहीं हुआ था। बाघों के हमले में घायल होने वालों की बात करें तो यह संख्या इस वर्ष पिछले वर्षों के मुकाबले जरूर काफी कम रही है। वर्ष 2020 में उत्तराखंड में बाघों के हमले में 11 लोग घायल हुए थे। 
 
2021 में यह संख्या 8 थी जबकि इस साल नवंबर तक 4 लोग बाघों के हमले में घायल हुए। उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष में सबसे बड़ी भूमिका लैपर्ड यानी गुलदार की है। वन्य जीवो के हिमायती भी अब यह मानने लगे हैं कि राज्य में लैपर्ड की संख्या उनके रहने के लिए उपलब्ध क्षमताओं से ज्यादा हो गई है।

नतीजा यह हुआ है कि लैपर्ड और बाघों को जंगलों में शिकार नहीं मिल पा रहा है और वे बस्तियों की ओर आ रहे हैं। पिछले दिनों अल्मोड़ा के मार्चुला में एक बाघिन का बस्ती में घुसकर डस्टबिन में भोजन ढूंढना इसका उदाहरण है।
 
जंगलों में क्षमता से ज्यादा गुलदार होने के कारण उनके हमले लगातार बढ़ रहे हैं। इस वर्ष अब तक गुलदारों के हमले में 14 लोग मारे गए हैं और 41 घायल हुए हैं। 2021 में कुल 22 लोगों को गुलदार ने मार डाला था और 60 घायल हुए थे। 2020 में 30 लोगों की मौत हुई जबकि 85 लोग घायल हुए थे।

मानव-वन्यजीव संघर्ष में भालू भी राज्य में बड़ी भूमिका में हैं। हालांकि तेंदुए और बाघों की तुलना में भालू के हमले से मरने वालों की संख्या काफी कम है। 
 
पिछले 3 वर्षों में भालू के हमले में 5 लोगों की मौत हुई। 2020 में 3 लोगों की जबकि 2021 में और 2022 में अब तक एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है। भालू के हमले में घायल होने वालों की संख्या काफी ज्यादा है।
 
पिछले 3 वर्षों में यह संख्या 178 दर्ज की गई है। इस वर्ष अब तक 33 लोग भालू के हमले में घायल हुए। पिछले वर्ष यह संख्या 59 थी जबकि 2020 में 86 लोग घायल हुए थे। बाघों की तुलना में हाथियों के हमले और हमले की तीव्रता काफी ज्यादा है। 
 
पिछले 3 वर्षों में हाथियों ने राज्य में 28 लोगों को मार डाला। यह स्थिति तब है जबकि हाथी राज्य की कुछ खास हिस्सों में ही रहते हैं। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में हाथी की मौजूदगी नहीं है। इस वर्ष हाथियों के हमले में 5 लोग मारे गए हैं पिछले वर्ष यह संख्या 12 और 2020 में 11 थी। इस वर्ष अब तक के हाथियों के हमले में 4 लोग हुए हैं। 2021 में घायलों की संख्या 15 थी। 2020 में 8 लोग घायल हुए थे।
 
बाघों के लिए सुरक्षित जगह : उत्तराखंड को बाघों के लिए एक सुरक्षित जगह माना जाता हैं देशभर में उत्तराखंड ही एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके हर जिले में बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है। बाघों को संरक्षित जीव घोषित किए जाने के बाद पूरे देश में समय-समय पर बाघों की गिनती होती है और यह गिनती बताती है उत्तराखंड में बाघों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 
 
हालांकि बाघों के संरक्षण के लिए देश के अन्य राज्यों में भी कई कदम उठाए गए हैं। राजस्थान का सरिस्का टाइगर रिजर्व इसका एक उदाहरण है। एक जमाने में बाघ विहीन हो चुके सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाहर से बाघ लाए गए। और अब इनकी संख्या अच्छी खासी है।
 
उत्तराखंड की बात करें तो कुछ वर्ष पहले तक इस राज्य में बाघों की बड़ी कमी दर्ज की गई थी। 2014 में राज्य में 340 बाघों की मौजूदगी दर्ज थी, लेकिन 2019 में यह आंकड़ा 442 गया था। यानी कि 3 सालों के भीतर अच्छी-खासी बढ़ोतरी बाघों की संख्या में दर्ज की गई थी। 
 
2022 में फिर से बाघों की गिनती हुई है, लेकिन अभी यह आंकड़ा जारी नहीं किया गया है। खास बात यह है कि इस राज्य के हर जिले में बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई है। हालांकि सबसे ज्यादा 250 बाघ कार्बेट नेशनल पार्क में मिले थे। (symbolic picture)
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