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Written By Author वृजेन्द्रसिंह झाला
Last Updated : बुधवार, 19 जनवरी 2022 (19:12 IST)

परीक्षा का मोड नहीं स्किल्स महत्वपूर्ण है, Corona काल में भी है अवसरों की भरमार

परीक्षा का मोड नहीं स्किल्स महत्वपूर्ण है, Corona काल में भी है अवसरों की भरमार - Skill is important not the mode of the exam
कोरोनावायरस (Coronavirus) काल में इस बात को लेकर चौतरफा बहस चल रही है कि परीक्षा का मोड ऑफलाइन होना चाहिए या फिर ऑनलाइन। ज्यादातर यूनिवर्सिटीज की मंशा है कि एक्जाम ऑफलाइन होनी चाहिए, जबकि परीक्षार्थियों और उनके परिजनों को इस बात का डर है ऑफलाइन परीक्षा के चलते विद्यार्थी संक्रमित हो सकते हैं और वे आगे की परीक्षा से वंचित हो सकते हैं। हालांकि विभिन्न यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के प्लेसमेंट अधिकारी मानते हैं कि प्लेसमेंट पर परीक्षा के मोड का कोई फर्क नहीं पड़ता। विद्यार्थियों में कंपनियों की जरूरत के मुताबिक स्किल्स होनी चाहिए। 
 
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की सेंट्रल प्लेसमेंट सेल के को-ऑर्डिनेटर एवं आईएमएस के प्लेसमेंट अधिकारी अवनीश व्यास ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि ऑनलाइन एक्जाम का हमारे प्लेसमेंट पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पिछली बार 300 से ज्यादा विद्यार्थियों का प्लेसमेंट हुआ था, इस बार जनवरी में ही यह संख्या 200 के पार हो गई है। हालांकि वे यह भी स्वीकार करते हैं कि कुछ कंपनियों ने जरूर अपने विज्ञापनों में उल्लेख किया था कि 2021 के विद्यार्थी एप्लाई न करें। व्यास कहते हैं कि यदि विद्यार्थी में कंपनी की रिक्वायरमेंट के हिसाब से क्वालिटी है तो प्लेसमेंट में कई दिक्कत नहीं आती। हालांकि व्यास कहते हैं कि पढ़ाई और परीक्षा ऑफलाइन ही होनी चाहिए। 
 
होल्कर कॉलेज के प्लेसमेंट ऑफिसर संजय व्यास कहते हैं कि प्लेसमेंट में डिग्री और मार्कशीट का बहुत ज्यादा असर नहीं होता है। सबसे महत्वपूर्ण होती है कि विद्यार्थी की क्वालिटी। ऐसे में एक्जाम ऑनलाइन हो या फिर ऑफलाइन इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है। प्लेसमेंट के दौरान स्टूडेंट्‍स की स्मार्टनेस, कम्यूनिकेशन स्किल्स, ग्रुप डिस्कशन आदि को परखा जाता है। हिन्दी और अंग्रेजी के उसके भाषा ज्ञान को भी परखा जाता है। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण उसकी स्किल्स ही होती है। 

रेनेसा ग्रुप हैड प्रमोशन ललित जादौन की राय भी इन सबसे उलट नहीं हैं। वे कहते हैं कि टेक्नोलॉजी क्षेत्र जैसे- बिजनेस एनालिटिक्स के साथ ही हेल्थ सेक्टर, इंश्योरेंस सेक्टर में जॉब की काफी डिमांड रही। अपग्रेट्‍स नामक कंपनी ने हमारे काफी स्टूडेंट्‍स को जॉब दिया। हालांकि नॉन टेक्निकल क्षेत्र में 30 से 35 फीसदी की गिरावट जरूर देखने को मिली। ऑटोमोबाइल और बैंकिंग क्षेत्र में भी जॉब सीमित रहे। बैंकिंग में फ्रेशर्स को मौका नहीं मिला। कुल मिलाकर कहें तो प्लेसमेंट की स्थिति अच्छी रही।
 
मेडिकेप्स के ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट हैड प्रसाद मुले कहते हैं कि परीक्षाएं ऑनलाइन हुई हैं तो कंपनियों की प्लेसमेंट प्रोसेस भी ऑनलाइन हो गई है। विद्यार्थियों को पैकेज भी पहले की तरह ही मिल रहे हैं। पेंडेमिक और नॉन-पेंडेमिक काल में कोई अंतर नहीं आया है। कंपनियां किसी भी उम्मीदवार को सिलेक्ट करते समय एप्टीट्‍यूट, एटीट्‍यूट, लर्नेबिलिटी और एडेप्टेबिलिटी जैसी क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान देती हैं। इसके अलावा यह भी ध्यान रखा जाता है कि विद्यार्थी ने डिग्री के साथ और कौनसे कोर्सेस किए हैं। प्रसाद कहते हैं कि पेंडेमिक में प्लेसमेंट की दृष्टि से चीजे और आसान हुई हैं। ऑनलाइन कैंपस से कंपनियों को भी फायदा हो रहा है। उन्हें यहां आने की जरूरत नहीं पड़ रही है। उनका खर्चा बच रहा है और हम भी ज्यादा कंपनियों को बुला पा रहे हैं। 
 
शिक्षाविद अवनीश पांडेय मानते हैं कि कोरोना पेंडेमिक का स्कूली शिक्षा पर जरूर असर देखने को मिला है। कॉन्टेक्टलेस पढ़ाई में बच्चा शेयरिंग, केयरिंग और डाउट क्लियर नहीं कर पाता। चूंकि क्लास की रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध हो जाती है, ऐसे में बच्चा कई बार आलसी बन जाता है। निश्चित ही स्कूली शिक्षा पर इसका असर देखने को मिलेगा, लेकिन उच्च शिक्षा के बाद प्लेसमेंट इसका उतना ज्यादा असर नहीं होगा। क्योंकि बच्चा जब किसी भी बड़ी कंपनी के लिए तैयारी करता है तो वह उसके लिए मानसिक रूप से तैयार होता है और उसकी तैयारी भी उससे जुड़ी सभी बातों को ध्यान में रखकर करता है। अत: प्लेसमेंट का उस पर बहुत ज्यादा असर नहीं होता।
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