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Last Modified: बनिहाल/जम्मू , सोमवार, 31 जुलाई 2023 (20:55 IST)

20 महीने की कानूनी लड़ाई के बाद बेटे की कब्र पर पढ़ा फातिहा

20 महीने की कानूनी लड़ाई के बाद बेटे की कब्र पर पढ़ा फातिहा - Read Fatiha on sons grave after 20 months of legal battle
Fateha After 20 months in haiderpora: करीब 20 महीने की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रामबन निवासी मगरे परिवार ने अपने बेटे अमीर मरगे की उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित कब्र पर फातिहा पढ़ा।
 
मगरे उन चार लोगों में शामिल था जिसे 15 नवंबर 2021 में श्रीनगर के बाहरी इलाके हैदरपोरा में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। पुलिस का दावा था कि वे आतंकवादी थे और उनके शवों को कुपवाड़ा के कब्रिस्तान में दफना दिया गया था। मगरे के पिता मोहम्मद लतीफ ने कहा कि बेटे की कब्र पर फातिहा पढ़कर उनका परिवार सुकून महसूस कर रहा है।
 
उन्होंने जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा परिवार को दिए गए पांच लाख रुपए के मुआवजे को उनके सिर से ‘आतंकवाद के धब्बे’ को धोने जैसा करार दिया। लतीफ, उनकी पत्नी और 8 रिश्तेदारों ने उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा इलाके में वदूरा गांव स्थित मगरे की कब्र पर रविवार को फातिहा पढ़ी।
 
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 2020 में फैसला किया कि वह ‘आतंकवादियों’ के शवों को परिवार को नहीं सौंपेगी बल्कि इसके बजाय उन्हें अलग-अलग दफनाएगी ताकि कानून-व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न नहीं हो।
 
प्रशासन को झुकना पड़ा : हालांकि, हैदरपोरा मुठभेड़ के बाद पैदा हुए जन आक्रोश को देखते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को झुकना पड़ा और उसने इस मुठभेड़ में मारे गए दो लोगों अल्ताफ अहमद भट और डॉ. मुदसिर गुल के शवों को कब्रों से निकालकर उनके परिजनों को सौंप दिया।
 
लतीफ को हालांकि मगरे का शव देने से इनकार कर दिया गया जिसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मई 2022 को लतीफ को राहत देते हुए अमीर मगरे का शव कब्र से निकालकर परिवार को सौंपने एवं 5 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।
 
अदालत ने साथ ही कहा कि अगर शव बहुत अधिक सड़ गया हो या सौंपने लायक अवस्था में नहीं हो या उससे जन स्वास्थ्य को खतरा हो तो याचिकाकर्ता और उसके करीबी रिश्तेदारों को कब्रिस्तान में ही अपने धार्मिक परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाए।
 
आदेश में कहा गया कि उस स्थिति में सरकार द्वारा याचिकाकर्ता (लतीफ) को बेटे के शव और परिवार की पंरपरा एवं धार्मिक विश्वास के तहत सम्मानजनक अंतिम संस्कार से वंचित करने के लिए पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए।’’
 
बाद में उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आदेश में संशोधन किया और परिवार को धार्मिक अनुष्ठान करने तक सीमित कर दिया और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को मुआवजा देने का आदेश दिया।
 
लतीफ ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश को विशेष अनुमति याचिका के तहत उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी लेकिन शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
 
लतीफ ने रामबन के संगलदान स्थित उनके आवास से फोन पर बताया कि पुलिस द्वारा सुविधा दिए जाने के बाद हम रविवार को अपने बेटे की कब्र पर गए। पांच लाख रुपये की मुआवजा राशि 21 जुलाई को मेरे खाते में जमा कर दी गई। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि मेरा बेटा निर्दोष था और आतंकवादी नहीं था।
 
उन्होंने कहा कि वे अब संतुष्ट हैं और न्याय की श्रेष्ठता को कायम रखने के लिए उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के आभारी हैं। (भाषा : प्रतीकात्मक फोटो)
 
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