गुरुवार, 7 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. प्रादेशिक
  4. Pushkar Dhami's road is not easy on Khatima seat
Written By एन. पांडेय
Last Updated : शुक्रवार, 21 जनवरी 2022 (15:52 IST)

खटीमा सीट पर आसान नहीं है पुष्कर धामी की राह, 'अपने' ही मात देने की फिराक में लगे

खटीमा सीट पर आसान नहीं है पुष्कर धामी की राह, 'अपने' ही मात देने की फिराक में लगे - Pushkar Dhami's road is not easy on Khatima seat
देहरादून। उत्तराखंड में जैसे-जैसे चुनाव की तिथियां नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे राज्य की राजनीति के सूरमाओं के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई हैं। भाजपा ने राज्य की 59 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा करने के बाद अब आज शुक्रवार से नामांकन भी शुरू हो गया है। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट से ही मैदान में उतारे गए हैं। चर्चा यह है कि उनके लिए इस बार यह सीट आसान नहीं होगी। पिछले चुनाव में धामी ने यह चुनाव 2700 वोटों से जीता था।

 
धामी को मुख्यमंत्री रहते इस बार उन्हीं के 'अपने' मात देने की फिराक में लगे हैं। मुख्यमंत्री रहते भुवन चंद्र खंडूरी और हरीश रावत की हार हो चुकी है। उत्तराखंड में उधम सिंह नगर जिले की खटीमा विधानसभा सीट पर जिले की ही नहीं, पूरे प्रदेश की निगाह है। हालांकि कांग्रेस ने अभी अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किए लेकिन इस सीट पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का सामना फिर पुराने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी से होना तय मन जा रहा है।

 
लेकिन क्षेत्र से मिल रही सूचनाओं के मुताबिक इस बार पुष्कर सिंह धामी की राह बहुत आसान नहीं है। खटीमा विधानसभा सीट के यदि पिछले 2 चुनावों के नतीजों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2017 में पुष्कर सिंह धामी की जीत का अंतर कम हुआ था। वर्ष 2012 में पुष्कर धामी इस सीट से पहली बार विधायक चुने गए। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पुष्कर सिंह धामी को 29,539 मत हासिल हुए थे जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के भुवन कापड़ी को 26,930 मत मिले। इस प्रकार धामी को 2,709 मतों की बढ़त से जीत मिली थी। उस वक्त बसपा प्रत्याशी रमेश सिंह राणा को 13,845 वोट मिले थे। यानी कुल पड़े मतों के 36 प्रतिशत वोट धामी और 33 प्रतिशत वोट भुवन कापड़ी को मिले। सिर्फ 3 प्रतिशत का ही अंतर रह गया।
 
इससे पहले वर्ष 2012 के चुनावी नतीजों पर नजर डाली जाए तो धामी को 20,586 वोट मिले जबकि कांग्रेस तत्कालीन प्रत्याशी देवेंद्र चंद को 15,192 और बसपा प्रत्याशी डॉक्टर जीसी पांडेय को 9,426 वोट मिले। उस वक्त धामी 5,394 वोटों से चुनाव जीते थे। उन्हें कुल पड़े वोटों के 29.91 प्रतिशत और कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र को 22.09 प्रतिशत वोट मिले थे। यानी उस वक्त भाजपा की 7.82 प्रतिशत वोटों की बढ़त थी, जो बाद में घटकर सिर्फ 3 फीसदी रह गई।
 
वर्तमान में मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी से उनके क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें बढ़ गई हैं, लेकिन अल्प कार्यकाल के चलते लोगों की उम्मीदें पूरी कर पाना संभव नहीं होने से नाराजगी लोगों में दिखती है। एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी है। शायद यही वजह रही कि धामी को लेकर यह चर्चा रही कि वे अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल सकते हैं। लेकिन अब जबकि प्रत्याशियों की सूची में उनका नाम खटीमा से ही आ चुका है तो उनका यहां से चुनाव लड़ना तय है।
 
अब चुनाव में उन पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी भी होगी, लिहाजा वे पिछले 2 चुनावों की तुलना में अपने विधानसभा क्षेत्र को पूरा वक्त नहीं दे पाएंगे। ऐसे में उनकी डगर और कठिन होने वाली है। यहां यह बताना जरूरी है कि मुख्यमंत्री रहते भुवन चंद्र खंडूरी और हरीश रावत भी अपने क्षेत्र पर पूरा फोकस नहीं कर पाए और नतीजतन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
 
मुख्यमंत्रियों के चुनाव हारने का इतिहास भी धामी की जीत के प्रति संशय को पुख्ता ही करता है जबकि कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष और खटीमा क्षेत्र से संभावित कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी का लगातार क्षेत्र में रहकर काम करना उनका प्लस प्वॉइंट माना जा रहा है। यह भी संभावना है कि भाजपा में मुख्यमंत्री पद के कई वरिष्ठ दावेदार भी उनकी अंदरखाने मदद कर सकते हैं, क्योंकि पार्टी में जूनियर कद के पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कमान मिलने को वे पचा नहीं पा रहे हैं।
 
बहरहाल, खटीमा का चुनाव परिणाम तो वहां के जागरूक मतदाता ही तय करेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की चुनावी डगर किस करवट बैठेगी, इसको लेकर प्रदेश में कौतूहल बढ़ा हुआ है। भारत-नेपाल की सीमा पर अवस्थित यह सीट चर्चा में जरूर आ गई है। 2 दिग्गजों की आपसी भिड़ंत से इस बार तो आम आदमी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एसएस कलर भी यहीं से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वे भी इस सीट के मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं।
ये भी पढ़ें
26 January Republic Day: लोकतंत्र क्यों है जरूरी, जानिए 10 कारण