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Written By सुरेश डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 20 जनवरी 2017 (19:38 IST)

अपने बच्चों के हाथों में पटाखे और खिलौना बंदूकें नहीं देखना चाहते कश्मीरी

अपने बच्चों के हाथों में पटाखे और खिलौना बंदूकें नहीं देखना चाहते कश्मीरी - Jammu and Kashmir people dont crckets
कुपवाड़ा के रहने वाले 10 वर्षीय मुहम्मद अकबर को अभी तक पता नहीं चल पाया था कि उसके अब्बाजान ने उसे इस बार ईद के अवसर पर पटाखे फोड़ने से क्यों रोका और साथ ही उसकी पिटाई क्यों कर डाली। यही दशा अनंतनाग के 12 साल के युसूफ की भी है। वह अपने मनपसंदीदा खिलौना चीन में निर्मित उस बंदूक से खेलना चाहता है जिसे उसकी बड़ी बहन ने उसे उसके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में दिया था। मगर उसके दादाजान तथा अब्बूजान इसके पक्ष में नहीं है।
27 सालों से पाक परस्त आतंकवाद से जूझ रही मानव रक्त से लथपथ हो चुकी कश्मीर घाटी में ऐसी दशा सिर्फ युसूफ या फिर मुहम्मद अकबर की ही नहीं है बल्कि सैकड़ों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें पटाखे फोड़ने या फिर खिलौना बंदूक के साथ खेलने पर अक्सर पिटाई का शिकार होना पड़ता है।
 
ऐसी परिस्थितियों के पीछे कश्मीर घाटी के हालात जिम्मेदार हैं। असल में कश्मीर में पटाखों की आवाज को अब अशुभ माना जाने लगा है। मुहम्मद अकबर के चाचाजान आतंकवादियों की बंदूक का शिकार हो चुके हैं। दो साल पूर्व ईद के दिन जब उसकी मौत हुई थी तो घरवालों ने समझा था कि कोई पटाखे फोड़ रहा है।
 
ऐसा ही हादसा युसूफ के चचेरे भाई के साथ हो चुका है। खिलौना बंदूक हाथों में लेकर घूमने वाला तौसीफ सुरक्षाबलों की गोलियों से मारा गया था। उसकी बंदूक जो दिखने में असली लगती थी, को सुरक्षाकर्मियों ने असली समझ लिया था। उसमें से निकलने वाली आवाज भी असल आवाज को मात देती थी।
 
नतीजतन इन सालों के दौरान कश्मीर में पटाखे फोड़ना अपशकुन ही माना जाता है। और खिलौना बंदूकें जानलेवा। मासूमों के इन दो खुशी देने वाले खिलौने से उन्हें वंचित रखने में अगर प्रत्यक्ष रूप से उनके अभिभावक हैं तो जिम्मेदार आतंकवादियों को ही ठहराया जा सकता है। 
 
‘अगर कश्मीर की खुशियों को आतंकवादी आग नहीं लगाते तो हमें क्या जरूरत पड़ी थी कि हम बच्चों को उनके मनपसंद खिलौने से वंचित रखते,’बारामुल्ला का नसीर कहता था। उसने भी अपने बच्चों को यह हिदायत दे रखी थी कि ऐसे खिलौनों से खेलने की हिमाकत न करें ताकि कोई खतरा पैदा न हों।
 
यह सच है कि अगर कई बार पटाखों की आवाजें सुनकर सुरक्षाबलों ने अकारण गोलीबारी कर मासूमों को कई बार क्षति पहुंचाई है तो खिलौना बंदूकें फर्जी आतंकवादियों के लिए जीवन-यापन का जरिया बन चुकी हैं। हालांकि एक खबर के मुताबिक बच्चों के इन दो मनपसंद खिलौनों पर सुरक्षाकर्मियों की ओर से मौखिक प्रतिबंध लागू है।
 
हालांकि इस बार की ईद पर कुछ सीमावर्ती कस्बों में बच्चों को पटाखों को फोड़ने की इजाजत तो दी गई थी, लेकिन बाद में सुरक्षाकर्मियों ने इस पर ऐतराज जरूर जताया था। खासकर कान फोड़ू बमों को वे पाक गोलाबारी समझ चुके थे। नतीजतन कुछ गांववासियों को सुरक्षाकर्मियों के गुस्से का भी शिकार होना पड़ा था जो अत्याचारों और मानवाधिकार हनन के रूप में सामने आया था।
 
हालात यह हैं कि बच्चों को उनके मनपसंद खिलौने नहीं मिलने के कारण कश्मीर के बच्चों में एक डर इन दोनों खिलौनों के प्रति दिलोदिमाग पर छा रहा है। वे इनका मजा तो लूटना चाहते हैं लेकिन जानते हैं कि ऐसा करने पर उनकी खुशियों को आतंकवादी या फिर सुरक्षाकर्मी लूट कर ले जाएंगे, जो पहले ही पटाखों के स्थान पर हथगोलों तथा नकली की जगह असली बंदूकों से खेलते हुए कभी न खत्म होने वाला खूनी खेल खेल रहे हैं कश्मीर में 27 सालों से।
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