खूनी ईद, कश्मीर में तीन और मरे
26 सालों बाद कश्मीर में ईद पर कर्फ्यू
श्रीनगर। पिछले 26 सालों में इस बार की बकरीद को ‘खूनी ईद’ के नाम से पुकारा गया है क्योंकि 26 सालों के दौरान यह पहला मौका था कि पूरी वादी में कर्फ्यू लगाया गया था और लोगों को नमाज अता नहीं करने दी गई थी। यही नहीं ईद के अवसर पर हुई हिंसा और सुरक्षाबलों की कार्रवाई में तीन और प्रदर्शनकारियों की मौत के साथ ही पिछले 67 दिनों में मरने वालों का आंकड़ा 86 को पार कर गया है। कश्मीर के खराब होते हालात के मद्देनजर सेना को पूरी वादी में प्रशासन की मदद के लिए तैयार रहने को भी कहा गया था जबकि कई ग्रामीण इलाकों में सेना को तैनात भी किया गया था।
मंगलवार को उग्र भीड़ और सुरक्षाबलों के बीच हिंसक झड़प में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। पुलिस के अनुसार, शोपियां जिले में बकरीद की नमाज के दौरान भीड़ ने सुरक्षाबलों पर हमला कर दिया। इस दौरान सुरक्षाबलों की कार्रवाई में एक युवक की मौत हो गई, जिसकी पहचान 24 साल के शाहिद अहमद के रूप में की गई। इससे पहले बांदीपोरा जिले में एक युवक मुर्तजा (25) की सुरक्षाबलों के साथ झड़प में मौत हो गई थी। पुलवामा जिले के अवंतीपोरा कस्बे में पुलिस के साथ झड़प के दौरान जलालुद्दीन (45) का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
प्रशासन ने कश्मीर घाटी के सभी 10 जिलों में हिंसक गतिविधियों की रोकथाम के लिए कर्फ्यू लगा दिया था। कहीं भी ईद की नमाज के लिए बड़ी भीड़ को एकत्र होने की अनुमति नहीं दी गई थी। वर्ष 1990 में राज्य में आतंकवाद के पैर फैलाने के बाद से यह संभवतः पहली बार है, जब ईद के मौके पर घाटी में कर्फ्यू लगा है। 26 साल में पहली बार ईदगाह और हजरतबल दरगाह पर बकरीद की नमाज अता नहीं की गई है।
अधिकारियों ने बताया कि सेना को तैयार रहने के लिए कहा गया था क्योंकि उन्हें आशंका थी की बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क सकती है। हालांकि कुछ स्थानों पर सेना ने फ्लैग मार्च करने की खबरें हैं पर उनकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई। वैसे प्रशासन ने ग्रामीण इलाकों के महत्वपूर्ण स्थानों पर सेना के जवानों को तैनात किया था, पर वे इसे सेना की तैनाती नहीं मानते थे।
राज्य में कानून और व्यवस्था की तनावपूर्ण स्थिति के कारण सरकार पहले से ही सभी टेलीकॉम नेटवर्कों की इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के आदेश दे चुकी थी। सरकारी दूरसंचार सेवा बीएसएनएल के अलावा सभी नेटवर्कों की मोबाइल सेवा भी अगले 72 घंटे तक बंद रहेगी। आठ जुलाई को सुरक्षाबलों द्वारा हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी बुरहान वानी को मार गिराए जाने के बाद से यहां मोबाइल सेवाएं प्रतिबंधित हैं। 27 जुलाई को ब्रॉडबैंड इंटरनेट शुरू करके ये सेवाएं आंशिक रूप से बहाल की गई थीं।
विपक्षी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कर्फ्यू लगाने के फैसले को लेकर सरकार की आलोचना की और कहा कि इससे पार्टी का यह दावा सच साबित हो गया कि महबूबा मुफ्ती की सरकार का हालात पर कोई नियंत्रण नहीं है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता ने कहा कि पीडीपी इस स्थिति की तुलना 2010 के आंदोलन से करती आई है, लेकिन आज से पहले कभी भी ईद जैसे मुबारक मौके पर यहां कर्फ्यू नहीं रहा है।