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  4. Challenge of veteran faces in front of Congress and BJP in Rajasthan assembly elections?
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 17 जून 2023 (14:40 IST)

राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के सामने दिग्गज चेहरों की चुनौती?

Ashok Gehlot
भीषण गर्मी से जूझ रहे राजस्थान में तूफान बिपरजॉय के चलते मौसम देखते ही देखते बदल गया है। जून के महीने राजस्थान में मौसम ने अचानक से करवट ले ली है औऱ मौसम सुहाना हो गया। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी परिदृश्य भी मौसम की तरह ही हर दिन बदल रहा है। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के अंदर बड़े नेताओं के बीच मचा घमासान कभी जोर,तो कभी शांत पकड़ता दिख रहा है।

दरअसल राजस्थान की चुनावी बिसात बहुत दिलचस्प है,इसका बड़ा कारण चुनावी साल में राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के अंदर चुनाव से पहले मचा घमासान है। राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जो अपने बड़े नेताओं के बीच आपसी सांमजस्य की कमी की बड़ी चुनौती से जूझ रही है, उन पर काबू पाना दोनों के लिए चुनौती बना हुआ है।
 
गहलोत को मिलेगा पायलट का साथ?-राजस्थान में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के मुखिया अशोक गहलोत को अपनी ही पार्टी के दूसरे बड़े नेता सचिन पायलट से लगातार बड़ी चुनौती मिली रही है। चुनावी साल में सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ लगातार बगावती तेवर दिखा कर सड़क पर आरपार की लड़ाई का शंखनाद करते हुए दिखाई दे रहे थे। सचिन पायलट के खुले विरोध के चले गहलोत सरकार डगमगाने लगी थी लेकिन कर्नाटक में  कांग्रेस की जीत के बाद कांग्रेस आलाकमान ने दोनों ही नेताओं को एक साथ बैठक आपसी गतिरोध को खत्म करने की कोशिश की और कहा गया कि अब राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव लड़ेंगे। 
कांग्रेस आलाकमान भले ही दावा कर रहा हो कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की दूरियां खत्म हो गई है लेकिन दोनों ही नेताओं के बीच दूरियां अब भी कायम है। दोनों ही नेता एक दूसरे पर तंज कसने से नहीं चूक रहे है। भले ही चुनाव से पहले अपनी अलग पार्टी बनाने से सचिन पायलट एक कदम पीछे हो गए हो लेकिन उनके तेवर अब भी बरकरार है।

भाजपा में वसुंधरा का चेहरा बना चुनौती?-राजस्थान की जनता पांच साल एक पार्टी को मौका देती है, तो अगले विधानसभा चुनाव में दूसरी पार्टी को मौका देती है। यहीं कारण है राजस्थान में पांच साल विपक्ष में रहने वाली भाजपा अपने लिए बड़ा मौका देख रही है। भाजपा सत्ता में आने के लिए पूरी कोशिश में लगी है लेकिन राज्य के बड़े नेताओं के बीच सामंजस्य बैठाना उसके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
rasundhra raje
राजस्थान में चुनाव से पहले भाजपा के बड़े नेताओं के बीच आपसी टकराव को देखते हुए भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की तैयारी में थी, लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से हार का सामना करना पड़ा उससे भाजपा अब राजस्थान में मोदी के चेहरे को आगे कर किसी रिस्क लेने के मूड में नहीं नजर आ रही है, और पांच साल में अपनी ही पार्टी में हाशिए में रहने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया  अचानक से ताकतवर होती नजर आ रही है। वहीं वक्त की नजाकत को भंपाते हुए वसुंधरा ने खुद को चुनाव कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाने को लेकर दबाव बना दिया है। 

2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के बाद पार्टी ने वसुंधरा को किनारे कर दिया था लेकिन वसुंधरा ने हार नहीं मानी वह लगातार अपनी जमीन को मजबूत करती गई। अब चुनाव  से ठीक पहले वसुंधरा राजे सिंधिया लगातार भाजपा आलाकमान पर दबाव बनाए हुए है। दबाव खुद को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने के साथ टिकट बंटवारे में छूट देना है। दरअसल वसुंधरा राजे के इस दावे को भाजपा आलाकमान के लिए एक आक्रामक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

राजस्थान भाजपा के अंदर में मचे इसी घमासन को देखते हुए चुनावी साल में भाजपा ने सतीश पुनिया को हटाकर सीपी जोशी को राजस्थान की कमान सौपी है। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सतीश पुनिया और पूर्व मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे सिंधिया के बीच सियासी अदावत किसी से छिपी नहीं थी। इतना ही नहीं वसुंधरा राजे सिंधिया, सतीश पुनिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच छत्तीस का आंकड़ा और समन्वय की कमी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। 
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