महाकुंभ में साधु-संतों के लिए कढ़ी-पकौड़ी का भोज क्यों होता है खास? जानिए इस परंपरा के पीछे का भावनात्मक जुड़ाव
Mahakumbh 2025: महाकुंभ में साधु-संतों के लिए कढ़ी-पकौड़ी का भोज एक विशेष परंपरा है। जब ये साधु-संत महाकुंभ से विदा लेते हैं, तो इस भोज के साथ वे एक-दूसरे से भावुक विदाई लेते हैं। इस बार भी प्रयागराज महाकुंभ में तीसरे शाही स्नान के साथ साधु-सन्यासियों ने एक साथ कढ़ी-पकौड़ी के भोज के साथ प्रस्थान शुरू कर दिया है।
कढ़ी-पकौड़ी का महत्व: कढ़ी-पकौड़ी का भोज साधु-संतों के बीच एकता और भाईचारे का प्रतीक है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब वे सभी एक साथ मिलकर भोजन करते हैं और पुराने यादों को ताजा करते हैं।
विदाई का भावुक पल: महाकुंभ के बाद साधु-संत अलग-अलग स्थानों पर चले जाते हैं। इसलिए कढ़ी-पकौड़ी का भोज उनके लिए एक विदाई का अवसर होता है। इस भोज के दौरान साधु-संत एक-दूसरे को गले लगाते हैं और आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह एक भावुक पल होता है जब वे एक-दूसरे से बिछड़ने का दुख महसूस करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कुंभ में मिलने के बाद यह तय नहीं होता है कि वे फिर कब आपस में मिलेंगे। जब कढ़ी-पकौड़ी बनने लगती है, तो सभी साधु एक-दूसरे से मिलते हैं और सुख-दुख साझा करते हैं।
कुंभ के बाद साधु-संत कहां जाते हैं?
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काशी: जूना अखाड़े के साधु-संत काशी जाते हैं जहां वे महाशिवरात्रि मनाते हैं।
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अयोध्या और वृंदावन: बैरागी अखाड़ों के कुछ साधु-संत अयोध्या जाते हैं और कुछ वृंदावन।
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पंजाब: उदासीन और निर्मल अखाड़ों के साधु-संत पंजाब के आनंदपुर साहिब जाते हैं।
क्यों पूर्णमासी से पहले विदा लेते हैं?साधु-संत: महाकुंभ में माघी पूर्णिमा से पहले ही विदा ले लेते हैं क्योंकि इसके बाद आम श्रद्धालुओं के लिए स्नान का समय होता है।