1. पतांजलि के के योगसूत्र के विभितिपाद में 'स्थिरता शक्ति योग।' के बारे में जानकारी मिलती है।
2. शरीर और मन-मस्तिष्क को तेजी से स्थिर करने के दो तरीके हैं:- पहला केवली कुंभक प्राणायाम और दूसरा कूर्मनाड़ी में संयम करना।
3. केवली कुंभक प्राणायाम का अर्थ है कि चलते-फिरते या उठते-बैठते कहीं पर भी श्वास और जीभ को हिलने से कुछ सेकंड के लिए रोक देना। स्वयं को स्टॉप कर देने की क्रिया है केवली। श्वास बाहर है तो बाहर ही रोक दें और भीतर है तो भीतर ही रहने दें।
4. दूसरा कूर्मनाड़ी में संयम करने पर स्थिरता होती है। कंठ कूप में कच्छप आकृति की एक नाड़ी है। उसको कूर्मनाड़ी कहते हैं। कंठ के छिद्र जिसके माध्यम से पेट में वायु और आहार आदि जाते हैं उसे कंठकूप कहते हैं। इस कंठ के कूप में संयम प्राप्त करने के लिए शुरुआत में प्रतिदिन प्राणायाम और भौतिक उपवास का अभ्यास करना जरूरी है। इससे धीरे-धीरे संकल्प और संयम जाग्रत होने लगेगा।
इसका लाभ : योग में कहा गया है कि सिद्धियों के लिए शरीर और चित्त की स्थिरता आवश्यक है। इसका अभ्यास करने से सिद्धियों का मार्ग खुलता है। यदि आपको सिद्धियों से मतलब नहीं है तो जब शरीर स्थिर होगा तो रोग, शोक और संताप जाते रहेंगे तथा मन में शांति का जन्म होगा। आप ऐसा नहीं सोचेगे जिससे चिंता होती है, ऐसा नहीं खाएंगे जिससे रोग होता है और ऐसा नहीं करेंगे जिससे मुसीबत का जन्म होता हो। यह योग हर हाल में फाइदेमंद साबित होगा।