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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 5 अगस्त 2024 (16:20 IST)

Sindhara Dooj 2024: सिंधारा दूज पर कैसे करें पूजन, जानें महत्व और विधि

Sindhara Dooj 2024: सिंधारा दूज पर कैसे करें पूजन, जानें महत्व और विधि - Sindhara Dooj 06 August 2024
Dooj Festival 2024
Highlights 
 
सिंधारा दोज के बारे में जानें।
सिंधारा दूज पर्व कब मनाया जाता है। 
सिंधारा दूज का महत्व और पूजा विधि जानें।
Sindhara Duj 2024 : वर्ष 2024 में मंगलवार, 06 अगस्त 2024 को सिंजारा दोज या सिंधारा दूज पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व हर साल श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर पड़ता है। और इसी दिन श्रावण मास का तीसरा मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा।

यह पर्व खासकर उत्तर भारतीय महिलाओं का पर्व है। दक्षिण भारत में, खासकर तमिलनाडु और केरल में, महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है। इस दिन वे उपवास रखकर अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।
 
महत्व : धार्मिक शास्त्रों के अनुसार सिधारा दूज का पर्व खासकर पंजाबी, हरियाणवी और राजस्थानी महिलाएं मनाती हैं। यह त्योहार श्रावण माह की प्रतिपदा के दूसरे दिन द्वितीया तिथि पर सिंधारा दौज या सिंधारा दूज का पर्व मनाया जाता है। तत्पश्चात अगले दिन यानी 07 अगस्त 2024, बुधवार को महिलाओं का खास पावन पर्व हरियाली तीज मनाया जाएगा।
 
महिलाओं द्वारा सिंधारा दूज को बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी सुहागन महिलाएं और कुंआरी कन्याएं भी श्रृंगार करके व्रत रखती हैं। सिंधारा दूज मुख्य रूप से यह बहुओं का त्योहार है। इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार प्रस्तुत करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ आते हैं। 
 
सिंधारा दूज के दिन, बहूएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए 'बाया' लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। 'बाया' में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है। द्वितीया तिथि को सुमंगल कहा जाता है जिसके देवता ब्रह्मा है। यह तिथि भद्रा संज्ञक तिथि है। भाद्रपद में यह शून्य संज्ञक होती है। सोमवार और शुक्रवार को मृत्युदा होती है। बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ आ जाती है और यह सिद्धिदा हो जाती है, इसमें किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।  
पूजा की सरल विधि : 
 
- सिंधारा दूज के दिन सुहागन महिलाएं उपवास रखती हैं और अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
- सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। 
- इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है। 
- शाम में, देवी को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा के साथ गौरी पूजा की जाती है।
- द्वितीया को छोटा बैंगन व कटहल खाना निषेध है।
- इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं पारंपरिक पोशाक भी पहनती हैं। 
- हाथों में मेहंदी लगाती हैं और आभूषण पहनती हैं। 
- इस उत्सव का खास अंग चूडि़यां है। अत: नई चूडि़यां खरीदना और अन्य महिलाओं को इसको उपहारस्वरूप देना इस उत्सव की एक दिलचस्प परंपरा एक हिस्सा है। 
- इस दिन सुहागन महिलाओं एक-दूसरे के साथ उपहारों का आदान-प्रदान करने का रिवाज हैं। 
- सिंधारा दूज के दिन ही झूले भी पड़ते हैं। महिलाएं झूले झूलते हुए गाने गाती हैं।
- सायंकाल के समय में गौर माता या देवी पार्वती की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह 'बाया' भेंट करती हैं। 
- सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और इस दिन बेटियां मायके से ससुराल भी आती हैं। 
- मायके से बाया लेकर बेटियां ससुराल आती हैं। 
- तीज के दिन शाम को देवी पार्वती की पूजा करने के बाद 'बाया' को सास को दे दिया जाता है। 

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