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पंढरपुर मेला महाराष्ट्र : जानिए मंदिर, यात्रा, भक्तराज पुंडलिक और संत तुकाराम के बारे में

पंढरपुर मेला महाराष्ट्र : जानिए मंदिर, यात्रा, भक्तराज पुंडलिक और संत तुकाराम के बारे में - Pandharpur Mela Maharashtra
प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। पंढरपुर की यात्रा आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। 20 जुलाई 2021 को देवशयनी एकादशी है। आओ जानते हैं कि मंदिर परिचय, यांत्रा और भक्ताज पुंडलिक के बारे में साथ ही संत तुकाराम के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी।
 
विठोबा मंदिर :
महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां श्रीकृष्ण को विठोबा कहते हैं। इसीलिए इसे विठोबा मंदिर भी कहा जाता है। यह हिन्दू मंदिर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह भगवान विठोबा की पूजा का मुख्य केंद्र है, जिनकी पत्नी रखुमई है। यह महाराष्ट्र का सबसे लोकप्रिय मंदिर है। पंढरपुर का विठोबा मंदिर पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी के तट पर शोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। माना जाता है कि यहां स्थित पवित्र नदी चंद्रभागा में स्नान करने से भक्तों के सभी पापों को धोने की शक्ति होती है।
 
 
पंढरपुर तीर्थ की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। श्री विट्ठल मंदिर यहां का मुख्य मंदिर है। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। निज मंदिर के घेरे में ही रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें पद्मावती, अंबाबाई और लखुबाई सबसे प्रसिद्ध हैं। चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। मील दूर एक गांव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है जिसे भगवान ने चलाया था। कहते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गए थे किंतु बाद में एक बार फिर इसे एक महाराष्ट्रीय भक्त वापस इसे ले आया और इसे पुन: यहां स्थापित कर दिया।
 
 
पंढरपुर यात्रा :
यहां मेला लगता है। लोग दूर दूर से यात्रा करते हुए यहां आते हैं। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भगवान विष्णु के अवतार विठोबा और उनकी पत्नी रुक्मणि के सम्मान में इस शहर में वर्ष में 4 बार त्योहार मनाने एकत्र होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में फिर क्रमश: कार्तिक, माघ और श्रावण महीने में एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं। भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग अलंडि में जमा होते हैं और पुणे तथा जजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।
 
 
भक्तराज पुंडलिड :
6वीं सदी में संत पुंडलिक हुए जो माता-पिता के परम भक्त थे। उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण थे। उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन श्रीकृष्ण रुकमणी के साथ प्रकट हो गए। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, 'पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।' पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा और कहा कि मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए। भगवान ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ धरकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ईंट पर खड़े होने के कारण श्री विट्ठल के विग्रह रूप में भगवान की लोकप्रियता हो चली। यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया, जो महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है। पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी माना जाता है, जो भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है। इसी घटना की याद में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है।
 
 
संत तुकाराम :
वारंकरी संप्रदाय में कई संत हुए हैं उनमें से एक थे संत तुकाराम (1577-1650)। महाराष्ट्र के प्रमुख संतों और भक्ति आंदोलन के कवियों में एक तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के अंतर्गत 'देहू' नामक ग्राम में शक संवत् 1520 को अर्थात सन् 1598 में हुआ था। इनके पिता का नाम 'बोल्होबा' और माता का नाम 'कनकाई' था। तुकाराम ने फाल्गुन माह की कृष्ण द्वादशी शाक संवत 1571 को देह विसर्जन किया। इनके जन्म के समय पर मतभेद हैं। कुछ विद्वान इनका जन्म समय 1577, 1602, 1607, 1608, 1618 एवं 1639 में और 1650 में उनका देहांत होने को मानते हैं। ज्यादातर विद्वान 1577 में उनका जन्म और 1650 में उनकी मृत्यु होने की बात करते हैं।
 
 
उन्हें 'तुकोबा' भी कहा जाता है। तुकाराम को चैतन्य नामक साधु ने 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। वे विट्ठल यानी विष्णु के परम भक्त थे। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग 'पंढरपुर' की यात्रा के लिए नियमित रूप से जाते थे। महाराष्ट्र के 'वारकरी संप्रदाय' के लोग जब पंढरपुर की यात्रा पर जाते हैं, तो 'ज्ञानोबा माऊली तुकाराम' का ही जयघोष करते हैं।
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