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Kharmas Month 2021 : खरमास का महत्व एवं पौराणिक कथा, यहां पढ़ें

Kharmas Month 2021 : खरमास का महत्व एवं पौराणिक कथा, यहां पढ़ें - Kharmaas katha
भारतीय पंचांग के अनुसार जब सूर्य धनु राशि में संक्रांति (dhanu sankranti) करते हैं तो यह समय शुभ नहीं माना जाता है। प्रतिवर्ष की तरह इस बार भी सूर्यदेव 16 दिसंबर 2021 को अपनी राशि बदल रहे हैं। इस बार गुरुवार को सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे। इसे ही सूर्य धनु संक्रांति कहा जाता है। 
 
Kharmaas ka Mahatva महत्व- धार्मिक मान्यतानुसार जब तक सूर्य मकर राशि में संक्रमित नहीं होते तब तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। सूर्य किसी विशेष राशि में प्रवेश करता है, इसी कारण से इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है। धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। इस दिन भगवान को मीठे व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।


भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा आदि का भोग तैयार किया जाता है। सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है। 
 
जो लोग विधिपूर्वक पूजन करते हैं उनके सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पंचांग के अनुसार यह समय पौष मास का होता है, जिसे खरमास कहा जाता है। इस माह की संक्रांति के दिन गंगा-यमुना स्नान का महत्व माना जाता है। पौष संक्रांति के दिन श्रद्धालु नदी किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इससे स्वयं के मन की शुद्धि होती है। बुद्धि और विवेक की प्राप्ति के लिए भी इस दिन सूर्य पूजन किया जाता है। 
 
खरमास की कथा- Kharmaas katha 
 
संस्कृत में गधे को खर कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित खरमास की कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं। उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं है। 
 
मान्यता के अनुसार उनके रूकते ही जन-जीवन भी ठहर जाएगा। लेकिन जो घोड़े उनके रथ में जुड़े होते हैं वे लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं। उनकी इस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया। वे उन्हें एक तालाब के किनारे ले गए, लेकिन उन्हें तभी यह ध्यान आया कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे। 
 
भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए छोड़े देते हैं और खर अर्थात गधों को अपने रथ में जोत देते हैं। अब घोड़ा-घोड़ा होता है और गधा-गधा, रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे एक मास का चक्र पूरा होता है तब तक घोड़ों को विश्राम भी मिल चुका होता है, इस तरह यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर खर मास कहलाता है।

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