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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 1 अगस्त 2025 (14:10 IST)

श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत कब है, क्या है इसका महत्व

When is 2025 Shravan Putrada Ekadashi
Putrada Ekadashi fast 2025: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल, श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत 5 अगस्त 2025, मंगलवार को रखा जाएगा।ALSO READ: 2025 में रक्षाबंधन पर नहीं होगा भद्रा का साया, पंचक भी नहीं बनेंगे बाधक, वर्षों बाद बना है ऐसा शुभ संयोग, जानिए राखी बांधने के श्रेष्ठ मुहूर्त
 
श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व: पुत्रदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन यह सावन के महीने में आता है, इसलिए इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत का महत्व निम्न कारणों से है...
 
1. संतान प्राप्ति का वरदान: 'पुत्रदा' का अर्थ है 'पुत्र देने वाली'। निःसंतान दंपत्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से रखते हैं, तो उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। यह व्रत योग्य और गुणवान संतान पाने की कामना के लिए भी किया जाता है।
 
2. संतान की रक्षा: जो माता-पिता पहले से ही संतान सुख का आनंद ले रहे हैं, वे अपनी संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए यह व्रत रखते हैं। माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान पर आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।
 
3. पापों का नाश: एकादशी का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्त हो जाता है।ALSO READ: अगस्त माह 2025 के ग्रह गोचर, जानिए 12 राशियों का राशिफल
 
4. मोक्ष की प्राप्ति: एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को इस लोक में सुख भोगने के बाद परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
5. सुख-समृद्धि: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है और माता लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है।
 
व्रत की कथा का महत्व: इस व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा है। प्राचीन काल में राजा सुकेतुमान के कोई पुत्र नहीं था, जिस कारण वह बहुत दुखी रहते थे। एक दिन वह वन में घूमते हुए ऋषि मुनियों के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने अपना दुख ऋषियों को बताया। ऋषियों ने उन्हें श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी और इस व्रत के महत्व के बारे में बताया। राजा ने ऋषियों के कहने पर विधि-विधान से यह व्रत रखा, जिसके प्रभाव से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से इस एकादशी का नाम 'पुत्रदा एकादशी' पड़ गया।ALSO READ: नरेंद्र मोदी के मंगल से होगा डोनाल्ड ट्रंप का नाश, श्रीकृष्ण और बाली की कुंडली में भी था ये योग

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