राजस्थान और मध्यप्रदेश खासतौर पर मालवांचल की सुहागिनें/महिलाएं श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज के रूप में बहुत श्रद्धा और उत्साह से मनाती हैं। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव हमारे सर्वप्रिय पौराणिक युगल शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
राजस्थान में एक बड़ी ही प्यारी लोक कहावत प्रचलित है। तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर...यानी सावनी तीज से आरंभ पर्वों की यह सुमधुर श्रृंखला गणगौर के विसर्जन तक चलने वाली है। सारे बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, श्राद्ध-पर्व, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली का पंच-दिवसीय महापर्व आदि...
तीज पर्व का सबसे मीठा उल्लास राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब में दिखाई पड़ता है। रंगीला राजस्थान हमेशा से ही तीज-त्योहार, रंग-बिरंगे परिधान, उत्सव और लोकगीत व रीति रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। तीज का पर्व राजस्थान के लिए एक अलग ही उमंग लेकर आता है जब महीनों से तपती हुई मरुभूमि में रिमझिम करता सावन आता है तो निश्चित ही किसी उत्सव से कम नहीं होता।
तीज का महत्व : दो महत्वपूर्ण तथ्य इस त्योहार को महत्ता प्रदान करते हैं।
* पहला शिव-पार्वती से जुड़ी कथा और दूसरा जब तपती गर्मी से रिमझिम फुहारें राहत देती हैं और चारों ओर हरियाली छा जाती है। यदि तीज के दिन बारिश हो रही है तब यह दिन और भी विशेष हो जाता है। जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएं भी बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य करती हैं और खुशियां मनाती हैं।
तीज के बारे में हिन्दू कथा है कि सावन में कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी पत्नी की तरह स्वीकार किया।
पुराने समय से महत्वपूर्ण परंपरा है इस दिन वट वृक्ष के पूजन की। इसकी लटकती शाखों के कारण यह वृक्ष विशेष सौभाग्यशाली माना गया है। औरतें वट वृक्ष पर झूला बांधती हैं और बारिश की फुहारों में भीगते-नाचते गाते हुए तीज मनाती हैं।
हरियाली / श्रावणी तीज रीति-रिवाज :-
तीज का त्योहार वास्तव में महिलाओं को सच्चा आनंद देता है। इस दिन वे रंग-बिरंगे कपड़े, खूब सारे गहने पहनकर दुल्हन की तरह तैयार होती हैं। आज कल तो कुछ विशेष नजर आने की चाह में ब्यूटी पार्लर जाना एक आम बात हो गई है। नवविवाहिताएं इस दिन अपने शादी का जोड़ा भी चाव से पहनती हैं।
* मां पार्वतीजी का आशीष पाने के लिए महिलाएं कई रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने मायके जाकर ये त्योहार मनाती हैं।
* जिन लड़कियों की सगाई हो जाती है, उन्हें अपने होने वाले सास-ससुर से सिंजारा मिलता है। इसमें मेहंदी, लाख की चूड़ियां, कपड़े (लहरिया), मिठाई विशेषकर घेवर शामिल होता है।
* विवाहित महिलाओं को भी अपने पति, रिश्तेदारों एवं सास-ससुर के उपहार मिलते हैं। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं।
* आकर्षक तरीके से सभी मां पार्वती की प्रतिमा मध्य में रख आसपास महिलाएं इकट्ठा होकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। विभिन्न गीत गाए जाते हैं।
* वैसे तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है।
* तीज पर हाथ-पैरों में मेहंदी भी जरूर लगाई जाती है। यह त्योहार महिलाओं के लिए गर्व का पर्व है।
इसके बिना अधूरा है हरियाली तीज का पर्व :-
श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन श्रावणी तीज, हरियाली तीज मनाई जाती है... इसे मधुश्रवा तृतीया या छोटी तीज भी कहा जाता है।
तीज के एक दिन पहले (द्वितीया तिथि को) विवाहित स्त्रियों के माता-पिता (पीहर पक्ष) अपनी पुत्रियों के घर (ससुराल) सिंजारा भेजते हैं। इसीलिए इस दिन को सिंजारा दूज कहते हैं। जबकि कुछ लोग ससुराल से मायके भेजी बहु को सिंजारा भेजते हैं।
विवाहित पुत्रियों के लिए भेजे गए उपहारों को सिंजारा कहते हैं, जो कि उस स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। इसमें बिंदी, मेहंदी, सिन्दूर, चूड़ी, घेवर, लहरिया की साड़ी, ये सब वस्तुएं सिंजारे के रूप में भेजी जाती हैं। सिंजारे के इन उपहारों को अपने पीहर से लेकर, विवाहिता स्त्री उन सब उपहारों से खुद को सजाती है, मेहंदी लगाती है, तरह-तरह के गहने पहनती हैं, लहरिया साड़ी पहनती है और तीज के पर्व का अपने पति और ससुराल वालों के साथ खूब आनंद मनाती है।
विशेष रूप से तीज के दिन प्रत्येक स्त्री रंग बिरंगी लहरिया की साड़ियां पहने ही सब तरफ दिखाई पड़ती हैं। तीज के इस त्योहार पर बनाई और खाई जाने वाली विशेष मिठाई घेवर है। जयपुर का घेवर विश्व प्रसिद्ध है। झूला, लहरिया की साड़ी और घेवर के बिना तीज का पर्व अधूरा है।
इस दिन जगह-जगह लोकगीत गुंजते हैं :-
गोरे कंचन गात पर अंगिया रंग अनार।
लैंगो सोहे लचकतो, लहरियो लफ्फादार।।