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बछ बारस की पौराणिक कथा : जब बछड़ा हो गया जिंदा

बछ बारस की पौराणिक कथा : जब बछड़ा हो गया जिंदा - bachh baras 2019 vrat katha
जन्माष्टमी के बाद भाद्रपद (भादो) द्वादशी को बछ बारस का पर्व मनाया जाता है। बछ बारस के दिन विवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति और पुत्र है तो उसकी मंगल कामना के लिए व्रत करती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्त्री को गाय के बछड़े की पूजा करनी चाहिए। गाय का बछड़ा ना मिले तो बछबारस की पूजा के लिए मिट्टी का गाय का बछड़ा बनाकर भी पूजा की जाती है।  वर्ष 2019 में बछ बारस का पर्व 27 अगस्त 2019 मंगलवार को है।
 
बछ बारस की कहानी इस तरह से है 
 
बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक साहूकार अपने 7 बेटे और पोतों के साथ रहता था। उस साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन कई सालों तक वो तालाब नहीं भरा था। तालाब नहीं भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडित को बुलाया। पंडित ने कहा कि इसमें पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे। तब साहूकार ने अपने बड़ी बहू को तो पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी। इतने में गरजते बरसते बादल आए और तालाब पूरा भर गया।
 
इसके बाद बछबारस आई और सभी ने कहा कि अपना तालाब पूरा भर गया है इसकी पूजा करने चलो। साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया। वह दासी से बोल गया था गेहुंला को पका लेना। गेहुंला से तात्पर्य गेहूं के धान से था। दासी समझ नहीं पाई। दरअसल गेहुंला गाय के बछड़े का भी नाम था। उसने गेहुंला को ही पका लिया। बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूजने आ गई थी। तालाब पूजने के बाद वह अपने बच्चों  से प्यार करने लगी तभी उसने बड़े बेटे के बारे में पूछा।
 
तभी तालाब में से मिटटी में लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला, मां मुझे भी तो प्यार करो। तब सास-बहू एक-दूसरे को देखने लगी।  
 
सास ने बहू को बलि देने वाली सारी बात बता दी। फिर सास ने कहा की बछ बारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया। 
 
तालाब की पूजा करने के बाद जब वह वापस घर लौटे तो उन्होंने देखा बछड़ा नहीं था। साहूकार ने दासी से पूछा, बछड़ा कहां है तो दासी ने कहा कि आपने ही तो उसे पकाने को कहा था।
 
साहूकार ने कहा, एक पाप तो अभी उतरा ही है तुमने दूसरा पाप कर दिया। साहूकार ने पका हुआ बछड़ा मिटटी में दबा दिया। शाम को गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े को ढूंढने लगी और फिर मिटटी खोदने लगी। तभी मिटटी में से बछड़ा निकल गया। साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया। उसने देखा कि बछडा गाय का दूध पीने में व्यस्त था। तब साहूकार ने पूरे गांव में यह बात फैलाई कि हर बेटे की मां को बछ बारस का व्रत करना चाहिए। हे बछबारस माता, जैसा साहूकार की बहू को दिया वैसा हमें भी देना। कहानी कहते सुनते ही सभी की मनोकामना पूर्ण करना।
 
कहीं-कहीं मतांतर से कथा में यह जिक्र भी मिलता है कि गेहूंला और मूंगला दो बछड़े थे जिन्हें दासी ने काटकर पका दिया था इसलिए गेहूं, मूंग और चाकू तीनों का प्रयोग इस दिन वर्जित है। 
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