नर्मदा जयंती : सत्युग के आदिकल्प से...
नर्मदा की महिमा का बखान
सत्युग के आदिकल्प से इस धरा पर जड़, जीव, चैतन्य को आनंदित और पल्लवित करने के लिए शिवतनया का प्रादुर्भाव माघ मास में हुआ था। मां नर्मदा की महिमा का बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता।स्कंद पुराण के रेवाखंड में ऋषि मार्केडेयजी ने लिखा है कि नर्मदा के तट पर भगवान नारायण के सभी अवतारों ने आकर मां की स्तुति की। पुराणों में ऐसा वर्णित है कि संसार में एकमात्र मां नर्मदा नदी ही है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव आदि करते हैं। आदिगुरु शंकराचार्यजी ने नर्मदाष्टक में माता को सर्वतीर्थ नायकम् से संबोधित किया है। अर्थात माता को सभी तीर्थों का अग्रज कहा गया है। नर्मदा के तटों पर ही संसार में सनातन धर्म की ध्वज पताका लहराने वाले परमहंसी, योगियों ने तप कर संसार में अद्वितीय कार्य किए। अनेक चमत्कार भी परमहंसियों ने किए जिनमें दादा धूनीवाले, दादा ठनठनपालजी महाराज, रामकृष्ण परमहंसजी के गुरु तोतापुरीजी महाराज, गोविंदपादाचार्य के शिष्य आदिगुरु शंकराचार्यजी सहित अन्य विभूतियां शामिल हैं। आज अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक के रेवा-प्रवाह पथ में पड़ने वाले सभी ग्रामों व नगरों में उल्लास और उत्सव का दिन है। क्योंकि आज नर्मदा जयंती है। कहा गया है- 'गंगा कनखले पुण्या, कुरुक्षेत्रे सरस्वती, ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।' -
आशय यह कि गंगा कनखल में और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है किन्तु गांव हो या वन नर्मदा हर जगह पुण्य प्रदायिका महासरिता है। कलकल निनादनी नदी है...हां, नदी मात्र नहीं, वह मां भी है। अद्वितीया, पुण्यतोया, शिव की आनंदविधायिनी, सार्थकनाम्ना स्रोतस्विनी नर्मदा का उजला आंचल इन दिनों मैला हो गया है, जो कि चिंता का विषय है। '
नर्मदाय नमः प्रातः, नर्मदाय नमो निशि, नमोस्तु नर्मदे नमः, त्राहिमाम् विषसर्पतः' - ..
हे मां नर्मदे! मैं तेरा स्मरण प्रातः करता हूं, रात्रि को भी करता हूं, हे मां नर्मदे! तू मुझे सर्प के विष से बचा ले। दरअसल, भक्तगण नर्मदा माता से सर्प के विष से बचा लेने की प्रार्थना तो मनोयोगपूर्वक करते आए हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि वे स्वयं जागरूक होकर नर्मदा को प्रदूषण रूपी विष से बचाने आगे आएं। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट में नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की जा चुकी है। ऐसे में नर्मदा जयंती मनाए जाने की सबसे बड़ी सार्थकता यही होगी कि इस पावन दिन सभी नर्मदा को प्रदूषण-मुक्त करने का संकल्प लें। महज संकल्प ही न लें उस दिशा में मनसा-वाचा-कर्मणा सार्थक प्रयासों को भी तरजीह दें।