पिट्सबर्ग की डायरी : पिट्सबर्ग का युवा वैज्ञानिक 'साहिल दोशी'
- अनुराग शर्मा
हर माता-पिता अपने बच्चों को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। कई बार यह संभव नहीं हो पाता। कभी प्रतिभा, कभी प्रतियोगिता और कभी संभावनाएं आड़े आ जाती हैं। लेकिन अमेरिका के भारतीय समुदाय ने इस कठिन कार्य को बार-बार संभव कर दिखाया है। पिट्सबर्ग के साहिल दोशी अमेरिका में चमकती भारतीय प्रतिभा का जीता-जागता उदाहरण हैं।
डिस्कवरी एजुकेशन थ्रीएम यंग साइंटिस्ट चैलेंज (Discovery Education 3M Young Scientist Challenge) नामक राष्ट्रव्यापी युवा वैज्ञानिक प्रतियोगिता के चुने हुए 10 छात्रों में पिट्सबर्ग के अपर सेंट क्लेयर स्कूल के साहिल दोशी भी एक हैं। नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले साहिल ने अन्य विजेताओं के साथ इस प्रतियोगिता के तीनों चरणों को पार किया।
अमेरिका में स्कूली बच्चों के विकास के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम आम हैं। स्थानीय स्कूल विभिन्न उद्योगों की अग्रणी कंपनियों, विश्वविद्यालयों और स्थानीय तथा नासा जैसी ख्यातनाम वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से अपने यहां भी कुछ न कुछ कार्यक्रम चलाते रहते हैं। सामान्य से अलग बच्चों के लिए भी बहु्त से कार्यक्रम बनाए गए हैं।
इस युवा वैज्ञानिक प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छात्रों को विभिन्न समस्याओं के हल के रूप में अपनी खोज पर काम करने और उसके प्रस्तुतीकरण के लिए एक-एक गुरु (Mentor) दिया गया था। अधिकांश छात्र अपने-अपने गुरु से पहली बार साक्षात तभी हुए, जब वे अपने पुरस्कार लेने थ्रीएम (3m) कंपनी के मिनिसोटा राज्य स्थित मुख्यालय पहुंचे।
इस प्रक्रम में साहिल के गुरु डॉ. जेम्स जोंजा 11 पुस्तकें लिख चुके हैं। इस समय उनके पास 45 स्वीकृत और 11 पेंडिंग पेटेंट हैं। डॉ. जोंजा के गुरुत्व में साहिल ने इस प्रतियोगिता के लिए एक ऐसी बैटरी बनाने की दिशा में काम किया है, जो कूड़े-कबाड़े से कार्बन डाई ऑक्साइड लेकर ऊर्जा उत्पन्न करेगी और वातावरण की ग्रीन-हाउस गैसों से छुटकारा भी दिलाएगी।
भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह खोज विद्युत का एक कम खर्चीला विकल्प भी प्रस्तुत करती है। प्रतियोगिता के अंतिम चरण में साहिल ने अपनी खोज का प्रोटोटाइप पोल्युसेल (PolluCell) प्रस्तुत किया और सम्मान के साथ 25,000 डॉलर का नकद पुरस्कार भी जीता। पिट्सबर्ग और यहां के भारतीय समुदाय को साहिल दोशी पर गर्व है।