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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 16 मई 2014 (18:14 IST)

तीसरे मोर्चे का सपना चकनाचूर

तीसरे मोर्चे का सपना चकनाचूर -
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में चली मोदी की आंधी में न केवल कांग्रेस का तंबू उखड गया, बल्कि तीसरे मोर्चे की भी हवा निकल गई।

543 सीटों के लिए हुए चुनाव के प्राप्त नतीजों में जनतादल यू वामदलों, समाजवादी पार्टी, जनतादल एस,बहुजन समाज पार्टी तथा आम आदमी पार्टी की इतनी बुरी हार हुई कि जो लोग कल तक तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने का सपना देख रहे थे, उनका यह सपना ही चकनाचूर हो गया। वैसे आप के नेता अरविंद केजरीवाल ने पहले कहा था कि वे तीसरे मोर्चे का समर्थन नहीं करेंगे। तीसरे मोर्चे को समर्थन देने के सवाल पर कांग्रेस के भीतर मतभेद थे।

बिहार में भाजपा और लोजपा तथा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने जद यू को जबर्दस्त शिकस्त दी तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का परचम इतना लहराया कि मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लाक तथा रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का सूपड़ा एक तरह से साफ हो गया। केरल में भी वामदलों का प्रदर्शन खराब रहा। इसी तरह उत्तरप्रदेश में भाजपा को अप्रत्याशित रूप से सफलता मिली जिसमें समाजवादी पार्टी तथा बसपा को मुंह की हार खानी पड़ी।

केवल ओडिशा में बीजू जनता दल तथा तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक को सफलता मिली और वे तीसरे मोर्चे की संभावना को आकार दे सकते थे लेकिन भाजपा की जबर्दस्त जीत और तीसरा मोर्चा के अन्य दलों की बुरी हार से अब शायद ही कोई भविष्य में भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे की अवधारणा पर विचार करे।

जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सपा के मुलायम सिंह यादव, माकपा के प्रकाश करात और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा ने बार बार कहा कि वे चुनाव के बाद तीसरे मोर्चा का गठन करेंगे और इसके लिए फरवरी में उन्होंने दिल्ली में 11 पार्टियों का सम्मेलन कर एक संयुक्त घोषणा पत्र भी जारी किया था।

परसों शरद यादव ने भी कहा था कि यह तीसरे मोर्चे को एकजुट करने का प्रयास करेंगे। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनवाने का सपना देखा था लेकिन मोदी लहर ने उन सबके सपनों पर पानी फेर दिया। (वार्ता)