7 अक्टूबर अश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो रहा है। चैत्र नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि भी कहते हैं। तुलजा भवानी बड़ी माता है तो चामुण्डा माता छोटी माता है। बड़ी नवरात्रि को बसंत नवरात्रि और छोटी नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं। चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं इनमें भी देवी भक्त आश्विन नवरात्रि का बहुत महत्व है। इनको यथाक्रम वासंती और शारदीय नवरात्र कहते हैं। इनका आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है। ये प्रतिपदा 'सम्मुखी' शुभ होती है। आओ जानते हैं कि नवरात्रि में करते हैं कौनसे 10 प्रमुख कार्य।
1. मूर्ति और कलश स्थापना : माता की मूर्ति लाकर उसे विधि विधान से घर में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही घर में घट या कलश स्थापना भी की जाती है। साथ ही एक दूसरे कलश में जावरे या जौ उगाए जाते हैं।
2. माता का जागरण : कई लोग अपने घरों में माता का जागरण रखते हैं। खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल आदि प्रदेशों में किसी एक खास दिन रातभर भजन-कीर्तन होते हैं। इन नौ दिनों में गरबा नृत्य का आयोजन भी होता है।
3. व्रत रखना : पूरे नौ दिन व्रत रखा जाता है। इसमें अधिकतर लोग एक समय ही भोजन करते हैं। प्रतिदिन दुर्गा चालीसा, चंडी पाठ या दुर्ग सप्तशती का पाठ करते हैं।
4. कन्या भोज : जब व्रत के समापन पर उद्यापन किया जाता है तब कन्या भोज कराया जाता है।
5. इनकी होती है पूजा : इस नवरात्रि में नौ देवियों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है।
6. नौ भोग और औषधि : शैलपुत्री कुट्टू और हरड़, ब्रह्मचारिणी दूध-दही और ब्राह्मी, चन्द्रघंटा चौलाई और चन्दुसूर, कूष्मांडा पेठा, स्कंदमाता श्यामक चावल और अलसी, कात्यायनी हरी तरकारी और मोइया, कालरात्रि कालीमिर्च, तुलसी और नागदौन, महागौरी साबूदाना तुलसी, सिद्धिदात्री आंवला और शतावरी।
7. नौ दिन के प्रसाद : पहले दिन घी, दूसरे दिन शक्कर, तीसरे दिन खीर, चौथे दिन मालपुए, पांचवें दिन केला, छठे दिन शहद, सातवें दिन गुड़, आठवें दिन नारियल और नौवें दिन तिल का नैवेद्य लगाया जाता है।
8. माता को अर्पित करें ये भोग : खीर, मालपुए, मीठा हलुआ, पूरणपोळी, मीठी बूंदी, घेवर, पंच फल, मिष्ठान, घी, शहद, तिल, काला चना, गुड़, कड़ी, केसर भात, साग, पूड़ी, भजिये, कद्दू या आलू की सब्जी भी बनाकर भोग लगा सकते हैं।
9. हवन : कई लोगों के यहां सप्तमी, अष्टमी या नवमी के दिन व्रत का समापन होता है तब अंतिम दिन हवन किया जाता है।
10. विसर्जन : अंतिम दिन के बाद अर्थात नवमी के बाद माता की प्रतिमा और जवारे का विसर्जन किया जाता है।