नवरात्रि 2020 : तारा शक्तिपीठ के 10 रहस्य
तांत्रिकों की देवी तारा माता को हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में पूजा जाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी 'तारा' का काफी महत्व है। नवरात्रि में माता तारा की पूजा और साधना करना बहुत ही पुण्य फलदायी और जीवन को पलटने वाला होती है। आओ जानते हैं माता तारा के बारे में 10 महत्वपूर्ण रहस्यमयी बातें।
1. माता सती की बहन : सती माता ने ही पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था। माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष की और भी पुत्रियां थीं जिसमें से एक का नाम तारा हैं। इस मान से तारा माता सती की बहन हैं।
2. तारने वाली माता : तारा एक महान देवी हैं जिनकी पूजा हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में होती है। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा कहा जाता है।
3. तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा : माता तारा को तांत्रिकों की देवी माना जाता है। तांत्रिक साधना करने वाला माता तारा के भक्त होते हैं।
4. नवमी के दिन होती है साधना : चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।
5. शत्रुओं का नाश करने वाली देवी : शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
6. हर मनोकामना करती है पूर्ण : जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्थना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।
7. तांत्रिक पीठ : तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है।
8. ऋषि वशिष्ठ ने भी की साधना : प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थी।
9. तारा देवी का दूसरा प्रमुख मंदिर : तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है।
10.भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा, एकजटा और नील सरस्वती।