ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका कृष्णा सोबती का निधन
नई दिल्ली। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती का शुक्रवार को यहां निधन हो गया। वे 94 वर्ष की थीं। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे किया जाएगा
हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने बताया कि सोबती का आज सुबह साढ़े आठ बजे एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल रही थीं।
वाजपेयी ने कहा कि इतनी उम्र में अस्वस्थ होने के कारण उन्हें बीच-बीच में अस्पताल में भर्ती कराया जाता था और वे कई बार स्वस्थ होकर घर आ जाती थीं।
वाजपेयी ने कहा कि उनका निधन हिन्दी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे निगम बोध घाट के विद्युत शवदाह गृह में किया जाएगा।
अपने समय से आगे जाकर लिखने वाली रचनाकार थीं : हिन्दी की वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती साथी रचनाकारों की दृष्टि में एक ऐसी लेखिका थीं जिन्होंने अपने समय से आगे जाकर लिखा और उनके लेखन में एक विशिष्ट तरह की रूमानियत थी जो जिंदगी के खुरदुरेपन को साथ लेकर चलती थी।
चर्चित कथाकार ममता कालिया ने सोबती के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि आज एक बड़ी रचनाकार चली गईं। उनकी रचनाओं 'जिंदगीनामा' या नवीनतम रचना 'गुजरात से गुजरात' तक से हम सभी को ऊर्जा मिलती रहेगी।
कालिया ने कहा, वह कालजयी रचनाकार थीं इसलिए काल उनका क्या कर सकता है। काल तो उनका मात्र शरीर लेकर गया है। उनकी रचनाएं तो हमारे साथ हैं। वह सदैव समकालीन ही रहेंगीं।
वरिष्ठ साहित्यकार लीलाधर मंडलोई मानते हैं, कृष्ण सोबती एक ऐसी शिखर लेखिका थीं, जिन्होंने भाषा और विषयवस्तु के लिहाज से हिन्दी साहित्य को एक नया कथा विन्यास दिया। उन्हें अपने समय की सबसे बोल्ड लेखिका कहा जाता है।
मंडलोई ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सबसे बड़ी पैरोकार थीं। उन्होंने कहा कि सोबती के लेखन का जो खुरदुरापन है, वह दरअसल समाज का खुरदुरापन है। उन्होंने अपने साहित्य में अपने जीवन मूल्यों और दृष्टिकोण को लेकर कोई दुराव-छिपाव नहीं रखा।
सोबती का उनकी एक पुस्तक 'जिंदगीनामा' के शीर्षक को लेकर प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम के साथ मुकदमा चला था। इस मुकदमे में उनके वकील और नारीवादी मुद्दों के चर्चित लेखक अरविन्द जैन ने बताया कि उन्होंने स्त्री मुद्दों पर जो लिखा उससे हिन्दी साहित्य को एक नई धारा, नई दिशा और नया दृष्टिकोण मिला। उनका उपन्यास 'सूरजमुखी अंधेरे के' जब आया तो वह बहुत चर्चित हुआ। यह बलात्कार की शिकार किसी औरत की हादसे के बाद के जीवन की कहानी है।
जैन ने कहा कि दुनिया में बलात्कार पर एक चर्चित किताब 1975-76 में आई थी सूसन ब्राउन मिलर की। यह उपन्यास उससे पहले ही आ चुका था। यह समय से आगे जाकर अपने समय को पहचाने वाली बात है।
उन्होंने कहा कि अमृता प्रीतम के साथ उनका जो मुकदमा चला उसमें सोबती ने काफी नुकसान भी उठाया और अंत में वह मुकदमा हारीं क्योंकि अदालत ने कहा कि किसी किताब के शीर्षक पर किसी का अधिकार नहीं हो सकता। किंतु उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। मुकदमे के दौरान उनका एक मकान भी बिका क्योंकि इस मुकदमे में उन्होंने बड़े-बड़े वकील किए और मुकदमा काफी लंबा खिंचा। जैन मानते हैं कि वह हिन्दी की एक अमिट हस्ताक्षर हैं।
इंदौर के चर्चित कवि और प्राध्यापक आशुतोष दुबे मानते हैं कि उनके लेखन की सबसे आकर्षित करने वाली बात है, उनकी उद्दाम जिजीविषा। हिन्दी के कथा साहित्य में उन्होंने अपनी तरह की एक एन्द्रिकता को स्थान दिया। उसकी जड़ें उसी उत्कट जिजीविषा में हैं। 'ये लड़की', 'मित्रों मरजानी' या 'यारों के यार' देखें तो उसके किरदार इस लोक के रूप-रस-गंध को पूरी उत्कटा से जीना चाहते हैं। वास्तव में सोबती ने भी स्वयं ऐसा ही जीवन जिया।
दुबे के अनुसार सोबती की रचनाओं में निर्मल वर्मा से कम कवित्व नहीं हैं। किंतु सोबती का कवित्व कठिन ढंग से कमाया गया कवित्व है। वह जीवन को उसकी कठोरता, उसकी मांसलता के साथ देखती थीं। उसके खुरदुरेपन को देखा और जिया और उसको लिखा।
दुबे के अनुसार उनके लेखन में ऐन्द्रिक सुख को लेकर उत्कट आकर्षण है। उनका यह एन्द्रिक सुख उनकी समकालीन लेखिका अमृता प्रीतम या कमला दास से इस तरह अलग है कि इसमें रूमानियत के स्थान पर जीवन का खुरदुरापन भी है।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में हिन्दी के पूर्व प्राध्यापक और लेखक जगदीश्वर चतुर्वेदी के अनुसार सोबती ने ऐसे नारी चरित्र गढ़े जिन्होंने उन्हें हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिलवाया। उन्होंने कहा कि सोबती ने अपनी समकालीन और आने वाली पीढ़ी की लेखिकाओं पर भी अपना गहरा प्रभाव छोड़ा।