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Last Updated : सोमवार, 7 नवंबर 2016 (19:54 IST)

स्मॉग से दिल्ली ही नहीं पूरी दुनिया है परेशान...

स्मॉग से दिल्ली ही नहीं पूरी दुनिया है परेशान... - World is suffering from Smog
धूसर रंग के इस जहरीले धुएं से दिल्ली ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है। 1952 के लंदन के हत्यारे 'ग्रेट स्मॉग’से कमोबेश ऐसी थी स्थिति में धुंध और धुएं से करीब 4,000 लोगों की असामयिक मौत हो गई थी। इसका बड़ा कारण था कि एसओ2 का स्तर काफी  ऊंचा होने के साथ-साथ औसत पीएम स्तर करीब 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया था। इसी तरह 2015 में चीन की राजधानी बीजिंग में भी प्रदूषण और स्मॉग के कारण आपातकाल जैसी स्थिति बन गई थी। बीजिंग में तो इसी साल फरवरी में इतना पॉल्यूशन बढ़ा था कि रेड अलर्ट जारी करना पड़ा था और लाखों वाहनों को रोक दिया गया था। 
 
क्या कहती है दुनिया : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एक अरसे से स्मॉग और उससे सेहत को पहुंचने वाले नुकसान के प्रति देशों को जागरूक करने की कोशिश करता रहा है। स्मॉग में सूक्ष्म पर्टिकुलेट कण, ओजोन, नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड मौजूद होते हैं जो लोगों की सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। 
 
पिछले सालों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई दोहराया है की हानिकारक पदार्थों के लिए एक सीमा तय करनी चाहिए नहीं तो बड़ें शहरों में रहने वाले लोगों को बहुत नुकसान पहुंचेगा।

डॉयचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी में माइंस के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के बेनेडिक्ट श्टाइल की एक रिसर्च में सामने आया है कि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि स्मॉग असल में कितना खतरनाक हो सकता है। हर साल सिर्फ जर्मनी में ही 40,000 से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से अपनी जान गंवा देते हैं। यह संख्या सड़कों पर दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों से भी ज्यादा है। लंबे समय तक इन हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने पर सांस की खतरनाक बीमारियां, फेफड़ों या मूत्राशय का कैंसर भी हो सकता है।
 क्या कर रहे हैं दूसरे देश : इससे बचने के लिए चीन ने 2017 तक कोयले के इस्तेमाल में 70% कटौती करने और 2020 तक कोयला मुक्त होने का लक्ष्य रखा है और कृत्रिम बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग पर जोर दिया। यह है। इसमें सिल्वर आयोडाइड जैसे केमिकल से भरे गोले वायुयान से दागे जाते हैं। इससे आसमान पर बादलों में मौजूद पानी बरस जाता है और जमीन पर जहरीले धुएं को मिटाने में सहायक होता है। 

इसी तरह 1952 के ग्रेट लंदन स्मॉग के बाद यूके ने दो कड़े ग्रीन कानून बनाए। इसके तहत पॉल्यूशन रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए। वहीं, कोयले की बजाय नेचुरल गैस के इस्तेमाल पर जोर दिया गया। इस तरह कार्बन इमिशन काबू किया गया।
 
 
जानिए कितना खतरनाक है यह स्मॉग: ठंड में जब स्मॉग का मौसम चल रहा होता है तब गाड़ियों के धुंए से हवा में मिलने वाले ये सूक्ष्म कण बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं. इन  सूक्ष्म कणों की मोटाई करीब 2.5 माइक्रोमीटर होती है और अपने इतने छोटे आकार के कारण यह सांस के साथ फेफड़ों में घुस जाते हैं और बाद में हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकते  हैं।


ठंड के उलटे गर्मियों में जब स्मॉग बनता है तो सबसे बड़ी समस्या होती है ओजोन की। कारों के धुएं में जो नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स होते हैं, वे सूर्य की रोशनी में रंगहीन ओजोन गैस में बदल जाते हैं। ओजोन ऊपरी वातावरण में एक रक्षा पर्त बना कर हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है। लेकिन वही ओजान अगर धरती की सतह पर बनने लगे तो हमारे लिए बहुत जहरीला हो जाता है।