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Last Modified: सोमवार, 7 नवंबर 2016 (16:17 IST)

हवा की शुद्धता के लिए प्रदूषण के खिलाफ जनांदोलन छेड़ने की जरूरत

हवा की शुद्धता के लिए प्रदूषण के खिलाफ जनांदोलन छेड़ने की जरूरत - Pollution in Delhi, Delhi, smoke, smoke in Delhi
-महेश तिवारी
 
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 2014 में ही अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा विश्व के सबसे प्रदूषित शहर की सूची में पहले स्थान पर रखा गया था। केंद्र और राज्यों की सरकारों की लापरवाही वाले रवैए की वजह से इस वर्ष दीपावली के बाद से दिल्ली का जनमानस धूलभरी धुंध से ग्रस्त नजर आ रहा है। लोगों का वायु प्रदूषण की वजह से घर से बाहर निकलना दूभर हो रहा है। पेरिस जलवायु समझौते के अंतरराष्ट्रीय कानून बन जाने के बावजूद हमारी सरकार नींद से नहीं जाग रही है। 
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ 2014 में दिल्ली के 2 नौनिहालों ने अलख उठाई थी। उस वक्त सरकारी तंत्र और जनता में जागरूकता की ज्वाला कुछ समय के लिए जागृत हुई थी और कुछ फौरी कदम राज्य सरकार द्वारा उठाए गए थे जिससे दिल्ली की प्रदूषित होती वायु के स्तर में कुछ गिरावट दर्ज की गई थी। 
 
लेकिन 'दिन बीता बात बीती' की तर्ज पर यह कार्रवाई हवा-हवाई हो चली और पुन: दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में वायु में धूल और धुएं की मात्रा बढ़ गई जिससे लोगों को सांस लेने में कठिनाई होने लगी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को 2014 में ही अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में पहले स्थान पर लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
 
हर वर्ष की तर्ज पर इस वर्ष भी दीपावली के विस्फोटक रसायनों जैसे मैग्नीशियम आदि के जलने और खेत की पराली को जलाने के बाद दिल्ली और हरियाणा से सटे आस-पास के वातावरण में वायु प्रदूषणरूपी जहर की मात्रा अधिक हो गई है। सुप्त सरकारी तंत्र का ध्यान वायु में घुली जहर की तरफ आकर्षित करने के लिए न्यायपालिका को संज्ञान लेना पड़ा और उसने तात्कालिक रूप से प्रदूषण के खिलाफ कदम उठाने के लिए दिल्ली सरकार को विवश किया। 
 
न्यायपालिका ने कहा कि दिल्ली से सटे क्षेत्रों में फैले प्रदूषण को दूर करने के लिए 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों आदि पर पाबंदी लगाई जाए। पर्यावरण प्रदूषण आज संपूर्ण विश्व के लिए संकट की घड़ी बना हुआ है, लेकिन भारत में इसकी स्थिति और विकट हो चली है। जिस देश में स्वच्छता को लेकर अलख निकल पड़ी हो, वहां के पर्यावरण के लिए ऐसी विकट स्थिति शुभ नहीं कही जा सकती है। 
 
पर्यावरण में फैल रहे प्रदूषण के लिए केवल सरकार को ही जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता है। इसके लिए देश के नागरिक भी जिम्मेदार हैं, जो पर्यावरण के लिए अपने उत्तरदायित्वों का निवर्हन नहीं कर रहे हैं। देश में करोड़ों रुपए विस्फोटक ज्वलनशील पटाखों आदि पर उठा दिए जाते हैं, जो प्रदूषण के लिए अहम जिम्मेदार होते हैं। इन पैसों का उपयोग अगर दिल्ली जैसे प्रदूषित शहर को निर्मल बनाने में किया जाए तो स्वच्छ वायु में सांस ली जा सकती है। लोगों की सोच में खोट होने की वजह से देश में पर्यावरण की स्थिति में परिवर्तन नहीं हो पा रहा है। इन पटाखों में विषैला रसायन और सीसा आदि होता है, जो पर्यावरण में घुलकर वातावरण को प्रभावित करने का कार्य कर रहे हैं। 
 
दिल्ली जैसे क्षेत्रों में प्रदूषण की वजह पटाखे ही नहीं, खेतों की पराली जलाने और मोटर वाहन आदि भी बराबर रूप से जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। खेत की पराली जलाने के मामले में उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल देश के लिए नासूर साबित हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सालाना 9 करोड़ टन से अधिक पराली खेतों में जलाई जाती है जिसकी वजह से पर्यावरण के नुकसान के साथ मिट्‌टी की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित होती है। 
 
राज्य सरकारें हर फसली सीजन में अपना घर फूंक तमाशा देखने का कार्य करती आ रही है जिसके कारण स्थिति यह उत्पन्न होने की कगार पर आ चुकी है कि सोना उगलने वाली धरती बांझ बनने की कगार पर है और वायु प्रदूषण से सांस लेना मुश्किल हो गया है। इन सभी तरह के वायु प्रदूषण के जिम्मेदार घटकों से निपटने के लिए न सरकार कोई ठोस कदम उठाती दिख रही है और न ही जनता अपने आप में इस भयावह मुसीबत की निजात के बारे में कोई सुध लेती दिख रही है।
 
खेती और किसानों के लिए अहम पराली को संरक्षित करने के बाबत बनाई गई राष्ट्रीय पराली नीति भी राज्य सरकारों के ठेंगा पर दिख रही है। गेहूं, धान और गन्ने की पत्तियां सबसे ज्यादा जलाई जाती हैं। अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी राज्यों को मिलाकर सालाना 50 करोड़ टन से अधिक पराली निकलती है। उम्मीदों से भरे प्रदेश उत्तरप्रदेश में 6 करोड़ टन पराली में से 2.2 करोड़ टन पराली जलाई जाती है। इसी तरह पंजाब में 5 करोड़ टन में से 1.9 करोड़ और हरियाणा में 90 लाख टन पराली जलाई जाती है। अनुमानित आंकड़े के अनुसार सिर्फ 1 टन पराली जलाने से 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फॉस्फोरस, 25 किग्रा पोटैशियम व 1.2 किग्रा सल्फर पराली जलाने से प्रतिवर्ष खेत से नष्ट हो जाते हैं। इसके कारण कई तरह के सूक्ष्म पौष्टिकता भी खेत से नष्ट हो जाती है और वायु प्रदूषण के घटक के रूप में सहायता प्रदान करती है। 
 
पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण और नुकसान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पराली नीति बनाई जिसे राज्यों को सख्ती से लागू करने को कहा गया लेकिन इसका अमल न के बराबर प्रतीत होता है। पराली नीति पर अमल के लिए विभिन्न कृषि, वन और पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी-अपनी तरफ से राज्यों को वित्तीय मदद पहुंचाने का प्रावधान है। इसमें फसल की कटाई के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी वाली मशीनें और खेत को बगैर साफ किए फसल की बुवाई की मशीन प्रमुख है। फिर भी इस पर सरकार सही दिशा में कार्य करती नहीं दिख रही है।
 
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धरती से अन्न के अलावा अन्य निकलने वाले पदार्थ भी उपयोगी होते हैं अत: पराली का उपयोग पशु चारा, कंपोस्ट खाद बनाने, ग्रामीण क्षेत्रों में छप्पर बनाने, पेपर बोर्ड बनाने आदि में इस्तेमाल के लिए सरकार द्वारा जनता को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। 
 
बढ़ते हुए वायु प्रदूषण को देखते हुए सरकारों को उचित और सकारात्मक पहल करने की जरूरत है जिससे कि समय रहते प्रदूषण पर काबू पाया जा सके।
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