क्या बिहार चुनाव से पहले फिर पलटी मारेंगे नीतीश कुमार?
Will Nitish Kumar leave BJP: वर्ष 2025 के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की राजनीति एक नई 'करवट' लेती दिखाई दे रही है। पिछले कुछ समय से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक अजीब सी चुप्पी साधे हुए हैं। उनकी चुप्पी को लेकर राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश बाबू चुनाव से पहले या फिर चुनाव के बाद एक बार फिर पलटी मार सकते हैं। इन अटकलों को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद ज्यादा बल मिला है। दरअसल, महाराष्ट्र में चुनाव के बाद भाजपा फ्रंट में आ गई थी और एकनाथ शिंदे को अपने कदम पीछे हटाने पड़े थे।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू यादव का के बयान ने राज्य की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। लालू ने कहा कि नीतीश कुमार एक बार फिर साथ आते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। नीतीश के लिए हमारे दरवाजे खुले हैं, वे साथ आएं तो हमें कोई ऐतराज नहीं है। हालांकि नीतीश हमेशा भाग जाते हैं, लेकिन हम उन्हें माफ कर देंगे। साथ में आएंगे तो मिलकर काम करेंगे। लालू के बयान पर नीतीश ने सीधे कोई टिप्पणी करने के बजाय सिर्फ इतना कहा कि छोड़िए, लालू क्या बोल रहे हैं। हालांकि लालू के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम एक बार फिर नीतीश के साथ जाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन लालू यादव की सहमति उनके इंकार को भी इकरार में बदल देगी।
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नीतीश को किस बात की चिंता : जानकारों की मानें तो महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार को लगने लगा है कि यदि वे भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो मुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी लगभग नामुमकिन है। वर्तमान में विधानसभा सीटों की संख्या देखें तो तुलनात्मक रूप से भाजपा भारी है। ऐसे में टिकट बंटवारे में भी भाजपा का ही पलड़ा भारी रहेगा। चुनाव के बाद भाजपा की सीटें भी स्वाभाविक रूप से नीतीश की जदयू से ज्यादा ही रहेंगी और मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा का ही दावा मजबूत होगा। वर्तमान में भाजपा को लोकसभा चुनाव की चिंता भी नहीं है। ऐसे में वह किसी भी सूरत में बिहार की कुर्सी पर हर तरह से कब्जा करना चाहेगी।
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बिहार में कुछ समय पहले हुए उपचुनाव के परिणाम के बाद 342 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की 77 विधानसभा सीटें हैं, जबकि जदयू के पास 45 विधायक हैं। दोनों ही पार्टियों के बीच 32 सीटों का अंतर है। सीटों के बंटवारे में भी भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा। विधानसभा चुनाव के बाद यदि चिराग पासवान या जीतनराम मांझी की पार्टी कुछ सीटें जीतने में सफल रहती हैं, तो भाजपा नीतीश से किनारा करने में बिल्कुल भी वक्त नहीं लगाएगी।
महाराष्ट्र का उदाहरण सामने है। वहां भाजपा ने अजित पवार को ज्यादा महत्व देकर शिंदे की शिवसेना को सुरक्षात्मक मुद्रा में ला दिया था। यही रणनीति विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में भी अपनाई जा सकती है। संभवत: यही चिंता नीतीश कुमार की भी है। अगस्त 2022 में नीतीश कुमार भाजपा से यह कहकर अलग हुए थे कि बीजेपी हमारा का अस्तित्व समाप्त करना चाहती है। भाजपा हमारी पार्टी को खत्म करना चाहती है। नीतीश कुमार के लिए एक बार फिर वही संकट मंडरा रहा है।
भारत रत्न की मांग का मकसद : इस बीच, केन्द्रीय मंत्री और किसी समय नीतीश के मुखर आलोचक रहे गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार के लिए भारत रत्न की मांग कर कहीं न कहीं यह संकेत देने की कोशिश की है, नीतीश को अब राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। हो सकता है कि नीतीश भारत रत्न के लिए समझौता भी कर लें। हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अभी 10 महीने का समय है, लेकिन नीतीश का अगला कदम क्या होगा इस पर सबकी नजर रहेगी।