बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. What will be the impact of the Supreme Court's decision on abortion and marital rape?
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 1 अक्टूबर 2022 (09:20 IST)

राइट टू अबॉर्शन पर अमेरिका की तुलना में लिबरल भारत, मैरिटल रेप के खिलाफ लड़ाई में बड़ी जीत

गर्भपात और मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले क्या होगा प्रभाव?

राइट टू अबॉर्शन पर अमेरिका की तुलना में लिबरल भारत, मैरिटल रेप के खिलाफ लड़ाई में बड़ी जीत - What will be the impact of the Supreme Court's decision on abortion and marital rape?
भारत में गर्भपात और मैरिटल रेप का मुद्दा इस सप्ताह का सबसे चर्चित मुद्दा रहा। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े और ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत में गर्भपात और मैरिटयल रेप को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। एक 25 साल की अविवाहित महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने सुरक्षित गर्भपात के अधिकार के दायरे को भी बढ़ा दिया, इसके साथ कोर्ट ने मैरिटयल रेप को लेकर भी एक बड़ा फैसला सुनाया। 
 
गर्भपात पर क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?-सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एएस बोपन्ना और जेबी परदीवाला की बेंच ने कहा कि एक महिला का मैरिटल स्टेटस उसके गर्भपात न कराने के अधिकार का आधार नहीं बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार देते हुए कहा है कि अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ़्ते तक की गर्भावस्था को खत्म करवा सकती हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि वैवाहिक जीवन में पति के ज़बरन शारीरिक संबंध बनाने की वजह से हुई गर्भावस्था भी मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी क़ानून (MTP ACT)  के दायरे में आती है। 
 
किन परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति?-कोर्ट के इस फैसले के बाद नियम 3बी उन महिलाओं को वर्गीकृत करता है जो 24 सप्ताह तक गर्भावस्था समाप्त करने के पात्र है। कोर्ट के आदेश के बाद ऐसी महिला जो यौन हिंसा, रेप या इनसेस्ट की सर्वाइवर हो,नाबालिग,ऐसी महिलाएं जिनके गर्भधारण के बाद वैवाहिक स्थिति में बदलाव (विधवा या तलाक़शुदा हो गई हो) हुआ हो। वहीं ऐसी महिलाएँ जो शारीरिक अक्षमता या मानसिक रूप से बीमार हो भी गर्भपात करवा कती है। वहीं अगर भ्रूण विकृत हो और पैदा होने के बाद वो सामान्य जीवन न जी पाए या बच्चा पैदा होने के बाद उसमें शारीरिक और मानसिक अक्षमताएं हों।
मैरिटयल रेप पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला?- इसके साथ ही मैरिटयल रेप पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि विवाहित महिला भी यौन हिंसा या रेप की शिकार हो सकती है। कोर्ट ने टिप्पणी की एक महिला उसके पति द्वारा उसकी मर्ज़ी के बिना बनाए गए संबध से गर्भवती हो सकती है। हम पार्टनर द्वारा की गई इस प्रकार की हिंसा की अनदेखी कर देते हैं जो कि एक सच्चाई है और बलात्कार का रूप ले सकती है।
 
क्या थी याचिका?- सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात और मरैटियल रेप को लेकर यह बड़ा फैसला 25 वर्षीय एक महिला की याचिका पर दिया। महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत स्पष्टता को लेकर एक याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता महिला लिव-इन-रिलेशनशिप में थी और उन्होंने अपनी मर्ज़ी से संबंध बनाए थे, लेकिन इस रिश्ते में रहते हुए वे गर्भवती हुईं और फिर कोर्ट में 24 हफ्ते में गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एक्सपर्ट विश्लेषण?-गर्भपात और मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और स्त्रीवादी न्याय सिद्धांत के देश के जाने माने पैरोकार अरविंद जैन कहते हैं कि महिला दृष्टिकोण से सुप्रीम कोर्ट का एक अच्छा फैसला है। जब अमेरिका जैसे देशों में अबॉर्शन को बैन कर दिया गया तब भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से अबॉर्शन के दायरे को बढ़ाया है, ऐसे में यह कई नजरियों से काफी अच्छा फैसला है,लेकिन अब भी कई सवाल है।
 
अरविंद जैन कहते हैं कि अगर हम पश्चिम की हिसाब से देखे तो एक ओर अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन को बैन कर दिया है, दूसरी तरफ भारत इस मामले को लेकर लिबरल है कि जहां जरूरत है वहां अबॉर्शन के राइट दिए जाए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई मामलों में (स्वास्थ्य कारणों और मां का जीवन खतरे में होने पर) लिमिट के बाद भी अबॉर्शन की छूट दी। गर्भपात को लेकर कानून तो 1971 में ही बन गया था और अगर प्रेग्नेंसी अनवांटेड हेल्थ तो गर्भपात हो सकता है।

अरविंद जैन कहते हैं कि बहुत सारी महिलाएं जो फोर्स सेक्स के वजह से प्रेग्नेंट हो जाती है तो वहां पर समाज का जो रवैया है वह बेहत संकुचित है। आज भी अविवाहित महिला के लिए प्रेग्नेंसी एक सोशल स्टिग्मा (social stigma) है,ऐसे में उनके समाने अबॉर्शन के अलावा कोई रास्ता नहीं है। मेरे हिसाब अविवाहित महिला का भी मां होने का अधिकार है।

वहीं ऐसे केस में कानूनी अभिभावक (legal guardian) के जो सवाल कोर्ट के सामने आए है, उसमें कोर्ट ने बच्चे के हित में कोर्ट के पास बंद लिफाफे में कोर्ट के पास जमा करवाने जैसे आदेश दिए। ऐसे सवाल है कि बच्चे के नाम बताने के लिए क्यों फोर्स किया जाता है। ऐसे में अबॉर्शन के साथ कुछ ऐसे सवाल है जो अब भी अनसुलझे है जो आगे के दौर में सॉल्व होंगे।
 
वरिष्ठ वकील अरविंद जैन कहते हैं कि 1970 के दशक में जब राइट टू अबॉर्शन जैसे कानून आए तो जनसंख्या एक बड़ी समस्या थी और जनसंख्या को कंट्रोल करने के लिए परिवार नियोजन के उपाय जैसे गर्भनिरोधक और राइट टू अबॉर्शन आए। हलांकि उस वक्त मुस्लिम और चर्चा के मानने वाले देशों ने इसका विरोध किया। भारत में भी अबॉर्शन को धार्मिक नहीं मानते है, लेकिन जनसंख्या की समस्या को देखते हुए हर किसी को घुटने माना गया है। अब जब फेमिनस्ट मूवमेंट के तहत महिला अधिकारों को लेकर कई सवाल भी आ गए। ऐसे में एक तरफ सवाल स्त्रियों की आजादी का है तो दूसरी तरफ सामाजिक भी है। 

वहीं मरैटियल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी अरविंद जैन कहते है कि मरैटियल रेप को लेकर एक लंबी बहस चल रही है। मैरिटल रेप को लेकर पहली रिट पिटीशन महादेव वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के केस में मैंने दिल्ली हाईकोर्ट में (2008) फाइल की थी और कोर्ट में बहस होती रही। मेरे हिसाब से अनवांटेड चाइल्ड में यह सारी चीजें (मैरिटयल रेप या प्री मैरिटयल रेप या एक्स्ट्रा मैरिटयल रेप) शामिल है। मेरे हिसाब से शादी को रेप करने का लाइसेंस नहीं मान सकते है,उस लिहाज से बिना इच्छा के सेक्स को रेप मान सकते है, मेरे हिसाब से जबरदस्ती एक राइट पूरुषों को दिया हुआ है।