बॉलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट् ने हाल में एक निजी चैनल पर अपनी कंडीशन—एडिटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) का जिक्र किया। ये कदम बहुत साहस वाला था, और मैं उनकी तारीफ करता हूं कि वो खुलकर मेंटल हेल्थ पर बात कर रही हैं। मेंटल हेल्थ से जुड़े इश्यूज पर बात करना बहुत ज़रूरी है, ताकि लोग बिना किसी हिचक के अपनी परेशानियां शेयर कर सकें और सही इलाज पा सकें। आइए, इस आर्टिकल में हम एडल्ट एडीएचडी को समझने की कोशिश करते हैं।
एडीएचडी क्या है?-एडीएचडी का अक्सर बच्चों में ही डायग्नोसिस होता है, लेकिन ये एडल्ट्स में भी हो सकता है। ये एक माइंड का डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जिसमें किसी को फोकस करने, ऑर्गनाइज़ रहने, टाइम मैनेजमेंट, और सेल्फ-कंट्रोल में दिक्कत होती है। अगर बचपन में इसका पता नहीं चला तो ये एडीएचडी एडल्ट लाइफ में भी चलता रहता है और किसी के कामकाज और पर्सनल लाइफ पर बुरा असर डाल सकता है।
लक्षण और चुनौतियां-एडल्ट एडीएचडी के लक्षणों में ध्यान की कमी, इम्पल्सिविटी, टाइम मैनेजमेंट में प्रॉब्लम्स, और मल्टीटास्किंग में कठिनाई शामिल हैं। ये लक्षण किसी के लाइफ के अलग-अलग पहलुओं जैसे काम, रिश्ते, और सोशल सिचुएशंन पर असर डाल सकते हैं।
फोकस करने में दिक्कत एडीएचडी से जूझ रहे लोग काम के दौरान छोटी-छोटी चीज़ों से डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं। इससे उनकी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है और करियर में आगे बढ़ने में प्रॉब्लम्स आती हैं।
टाइम मैनेजमेंट और देरी- कई एडल्ट्स जिन्हें एडीएचडी है, वो टाइम पर काम पूरा नहीं कर पाते। वो चीज़ों में देरी करते हैं या डेडलाइंस का पालन नहीं कर पाते।
इम्पल्सिविटी-कई बार बिना सोचे-समझे रिएक्ट करना या फैसला लेना एडीएचडी के कारण होता है। इससे उनके रिश्तों में प्रॉब्लम्स आ सकती हैं। असंगठन एडीएचडी वाले एडल्ट्स अक्सर चीज़ें भूल जाते हैं या उन्हें ऑर्गनाइज़ रखने में दिक्कत महसूस करते हैं। इससे पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में चैलेंजेस आ सकते हैं।
समाज में एडीएचडी की समझ की कमी-हमारे समाज में एडीएचडी की समझ अभी भी कम है। एडल्ट्स में इस कंडीशन से जूझ रहे लोगों को अक्सर 'आलसी', 'अनुशासनहीन', या 'बेपरवाह' समझा जाता है। असल में, ये एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, और इसे इग्नोर करना या 'आलस्य' का नाम देना गलत है। एडीएचडी किसी के ब्रेन की फंक्शनिंग को प्रभावित करता है, जिससे उनके लिए फोकस करना और काम को ऑर्गनाइज़ करना मुश्किल हो जाता है।
इलाज और समाधान- एडीएचडी के इलाज में सबसे जरूरी है इसका सही डायग्नोसिस। अगर एडल्ट एडीएचडी का पता न चले तो लोग अपनी लाइफ में लगातार स्ट्रेस, कम आत्म-सम्मान, और असफलता का अनुभव कर सकते हैं। लेकिन सही ट्रीटमेंट और सपोर्ट से एडीएचडी वाले लोग अपनी लाइफ में बैलेंस और सक्सेस पा सकते हैं।
मेडिकल ट्रीटमेंट और काउंसलिंग-एडल्ट एडीएचडी का इलाज आमतौर पर मेडिसिन और कॉग्निटिव-बिहेवियरल थेरेपी (CBT) के कॉम्बिनेशन से किया जाता है। दवाइयां ब्रेन की केमिकल प्रोसेस को सुधारने में हेल्प कर सकती हैं, जिससे फोकस करना आसान हो जाता है। थेरेपी से लोग अपने नेगेटिव थॉट्स और बिहेवियर पर काम कर सकते हैं।
लाइफस्टाइल में बदलाव-टाइम मैनेजमेंट और ऑर्गनाइज़ रहने के लिए कुछ टूल्स और टेक्नीक का यूज करके भी एडीएचडी के लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। जैसे, एक प्लान बनाना, अलार्म सेट करना, प्रायोरिटी वाले काम पहले करना आदि। रेगुलर एक्सरसाइज, मेडिटेशन, और बैलेंस्ड डाइट भी मेंटल हेल्थ में सुधार ला सकते हैं।
मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता-आलिया जैसे पब्लिक फिगर जब अपने एक्सपीरियंस शेयर करते हैं, तो इससे मेंटल हेल्थ से जुड़े इश्यूज को समझने में हेल्प मिलती है। उनकी ये ईमानदारी उन लाखों लोगों के लिए इंस्पिरेशन बन सकती है जो एडीएचडी जैसी कंडीशन से जूझ रहे हैं। उनके इस खुलासे से ये मैसेज मिलता है कि मेंटल हेल्थ कोई शर्म की बात नहीं है और इसे छुपाने की बजाय खुलकर मदद मांगनी चाहिए।
वयस्क एडीएचडी एक रियल और चैलेंजिंग कंडीशन है, लेकिन सही सपोर्ट और ट्रीटमेंट से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात करने से समाज में अवेयरनेस बढ़ती है और ये समाज को मेंटल हेल्थ के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती है। आलिया ने अपने एक्सपीरियंस को शेयर करके मेंटल हेल्थ से जुड़ी चुप्पी को तोड़ने की कोशिश की है। ये हमें सिखाता है कि मेंटल हेल्थ के इश्यूज को छुपाने की बजाय खुलकर मदद मांगने और अपनी कंडीशन को एक्सेप्ट करने में ही सच्चा साहस है।
मेंटल हेल्थ का महत्व समझें, अपनी फीलिंग्स शेयर करें, और अपनी कंडीशन को एक्सेप्ट करने से न हिचकें—यही पहला कदम है बेटर मेंटल हेल्थ की ओर।