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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : मंगलवार, 26 जुलाई 2022 (15:05 IST)

चुनाव जीतने के लिए ‘रेवड़ी कल्चर’ से श्रीलंका की राह पर भारत!, ‘मुफ्तखोरी’ पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बताया गंभीर मुद्दा

चुनाव जीतने के लिए ‘रेवड़ी कल्चर’ से श्रीलंका की राह पर भारत!, ‘मुफ्तखोरी’ पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बताया गंभीर मुद्दा - Supreme Court strict on free gifts freebies announcement to win elections, may be banned
देश में चुनाव जीतने के लिए बढ़ता ‘रेवड़ी कल्चर’ और राजनीतिक दलों का ‘मुफ्तखोरी’ को बढ़ावा देने के मुद्दें पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नजर टेढ़ी कर ली है। आद सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को मुफ्त में उपहार देने से रोकने के लिए समाधान खोजने का निर्देश दिए है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश ऐसे वक्त आया है जब देश की सियासत में इन दिनों ‘रेवड़ी’ और ‘मुफ्त’ सबसे बड़ा हॉट सियासी मुद्दा बन गया है। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ‘रेवड़ी’ और ‘मुफ्त’ को लेकर भाजपा और आम आदमी पार्टी आमने-सामने है। सोमवार को गुजरात दौरे पर पहुंचे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त की सियासत को लेकर भाजपा पर जमकर निशाना साधा। दरअसल गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली देने का वादा किया है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने बताया गंभीर मुद्दा-चुनाव जीतने के लिए मुफ्त में बिजली-पानी या अन्य वादा करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ लगी जनहित याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को मुफ्त में उपहार देने से रोकने के लिए समाधान खोजने का निर्देश दिय। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से भी उनकी राय मांगी जिस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है। राजनीतिक मुद्दों के कारण भारत सरकार से कोई फैसला लेने की उम्मीद नहीं कर सकता। हालांकि इस पर विचार करने के लिए वित्त आयोग को आंमत्रित कर सकते है। 
 
श्रीलंका के रास्ते पर भारत!- सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि हर राज्य पर लाखों का कर्जा है। जैसे पंजाब पर तीन लाख करोड़ रुपये,यूपी पर छह लाख करोड़ और पूरे देश पर 70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में अगर सरकार मुफ्त सुविधा देती है तो ये कर्ज और बढ़ जाएगा। अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि श्रीलंका में भी इसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई है और भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने एनवी रमना ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से पूछा कि मुफ्तखोरी को नियंत्रित करने के लिए आपने क्या सुझाव दिए हैं? इस पर उपाध्याय ने कहा कि लॉ कमीशन की तकरीबन तीस रिपोर्ट्स जमा कराई गई हैं। इसके साथ चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह आवंटन और मान्यता के दौरान अतिरिक्त शर्त लगा सकता है कि राजनीतिक दल ऐसे वादे नहीं करें।
मुफ्तखोरी पर क्या है याचिका?- वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के कहा गया है कि चुनावों में मुफ्तखोरी के वादे मतदाताओं को प्रभावित करते है। राजनीतिक दलों की यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व के लिए खतरा है। साथ ही इससे संविधान की भावना को भी चोट पहुंचती है। राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता हासिल करने की यह प्रथा, एक तरह से रिश्वतखोरी ही है। लोकतंत्र के सिद्धांतों को बचाने के लिए इस तरह इस पर रोक लगाने की जरूरत है। याचिका में मांग की गई है कि मुफ्तखोरी के वादे करने वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द किया जाए और चुनाव चिह्न जब्त कर लिया जाए।
 
‘मुफ्त’ और रेवड़ी कल्चर पर सियासत हॉट-देश की सियासत में इन मुफ्त की सियासत सबसे बड़ा सियासी मुद्दा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में बुंदेलखण्ड एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे देश में मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है,ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है। इस रेवड़ी कल्चर से देश के लोगों को बहुत सावधान रहना है। रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है, रेवड़ी कल्चर को देश की राजनीति से हटाना है। 
 
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेवड़ी वाले बयान पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार हमलावार है। सोमवार को गुजरात पहुंचे अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाते हुए कहा कि नेताओं को मुफ्त बिजली मिलती है तो जनता को क्यों नहीं मिलनी चाहिए? उसको फ्री रेवड़ी बोलना सही नहीं है। इस महंगाई से नेताओं को फर्क नहीं पड़ता. जनता को मुफ्त बिजली देने की बात करते हैं तो नेताओं को पता नहीं क्यों मिर्ची लगती है?
ऐसे में जब इस साल के आखिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने है तब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी गुजरात की जनता से बड़ा वादा करते हुए एलान किया है कि उनकी पार्टी के गुजरात में सत्ता में आने पर प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देगी। गौरतलब है कि दिल्ली में जहां आम आदमी पार्टी सत्ता में है वहां 200 यूनिट और AAP शासित पंजाब में लोगों को 300 यूनिट मुफ्त में बिजली मिल रही है। 

‘मुफ्त’ का वादा चुनाव जीतने का ट्रंपकार्ड- भारतीय राजनीति में ‘मुफ्त’ का कार्ड अब चुनाव जीतने की गारंटी सा बन गया है। दक्षिण के राज्यों की सियासत में मुफ्त बांटने की प्रवृत्ति सबसे पहले पनपी। साड़ी, प्रेशर कुकर से लेकर टीवी, वॉशिंग मशीन तक मुफ्त बांटी जाने लगी। तमिलनाडु में मुख्यमंत्री जयललिता के शासनकाल में अम्मा कैंटीन खूब फली-फूली लेकिन मुफ्त बांटने की सियासत परिणाम यह हुआ कि राज्यों की अर्थव्यवस्था  कर्ज के बोझ तले दबने लगी। 

देश में दक्षिण भारत की सियासत से अपनी एंट्री करने वाला ‘मुफ्त बांटने’ का कार्ड अब उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में अपने पैर जमा चुका है। अगर कहा जाए कि आज भारत में मुफ्त बांटकर वोट पाना एक शॉर्टकट बन गया है, तो यह गलत नहीं होगा।

राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को साधने के लिए ‘मुफ्त’ को चुनावी टूल के रूप में इस्तेमाल कर रहे है। वोटरों को रिझाने के लिए मुफ्त अनाज, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त लैपटॉप, मुफ्त स्कूटी, मुफ्त स्मार्टफोन के साथ-साथ बेरोज़गारी भत्ता भी केंद्र और राज्य की सरकारें खुलकर दे रही है।

क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ?- अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय बनाए गए राष्ट्रीय आयोग ने भी देश में बढ़ते मुफ्त के कल्चर पर एतराज जताया था। आयोग के सदस्य और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में कहा कि संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग National Commission to review the Working of the Constitution जिसके अध्यक्ष जस्टिस एमएन राव वेंकटचलैया थे और मैं डॉफ्टिंग कमेटी का चैयरमैन था उसने अपनी सिफारिश में कहा था कि सबको काम मिलना चाहिए और काम के पैसे मिलना चाहिए, काम कराके पैसा देना उचित है। 

सुभाष कश्यप कहते हैं कि आज जिस तरह से सरकारें गरीबों के हित के नाम पर मुफ्त की स्कीम लॉन्च कर रही है वास्तव में वह इससे अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति कर रही है। वह देश के गरीबों में मुफ्तखोरी की आदत डालना सही नहीं है। वह कहते हैं कि मुफ्तखोरी की सियासत से लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। मुफ्तखोरी की सियासत से देश की इकोनॉमी के बैठने का खतरा हो जाएगा। ऐसे में इकोनॉमी बैठने से देश को खतरा हो गया और इसके साथ निष्क्रियता को बल मिलेगा अगर मुफ्त का राशन मिलेगा तो लोग काम करना बंद कर देंगे। हिंदुस्तान में लोगों को बहुत कम में जीवन निर्वाहन करने की आदत है ऐसे में जब मुफ्त राशन मिलेगा तो काम क्यों करेंगे। 
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