manipur violence: नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को केंद्र और मणिपुर सरकार (Manipur government) को पूर्वोत्तर के इस राज्य में जातीय हिंसा (aste violence) से प्रभावित हुए लोगों की सुरक्षा बढ़ाने, उन्हें राहत सहायता मुहैया कराने तथा उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा। न्यायालय का यह निर्देश इन दलीलों पर संज्ञान लेने के बाद आया कि बीते 2 दिनों में वहां कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हिंसा के बाद की स्थिति को मानवीय समस्या करार देते हुए कहा कि राहत शिविरों में उपयुक्त इंतजाम किए जाएं और वहां शरण लेने वाले लोगों को भोजन, राशन तथा चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। पीठ में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल हैं।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि हम जानमाल को हुए नुकसान को लेकर बहुत चिंतित हैं। न्यायालय ने निर्देश दिया कि विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं और उपासना स्थलों की सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएं।
केंद्र और राज्य की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हिंसा से निपटने के लिए उठाए गए कदमों से पीठ को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि सेना और असम राइफल्स की टुकड़ियों के अलावा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की 52 कंपनियां हिंसा प्रभावित इलाकों में तैनात की गई हैं।
उन्होंने न्यायालय को बताया कि अशांत इलाकों में 'फ्लैग मार्च' किया जा रहा और शांति कायम करने के लिए बैठकें की गई हैं। मेहता ने बताया कि राज्य सरकार ने पुलिस के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी को सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए एक अन्य शीर्ष अधिकारी को मणिपुर में मुख्य सचिव के तौर पर सेवा देने के लिए रविवार को वापस बुलाया गया।
उन्होंने कहा कि स्थिति की लगातार निगरानी की जा रही है और इसके लिए हेलीकॉप्टर तथा ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। मेहता ने कहा कि विस्थापितों के लिए राहत शिविर संचालित किए जा रहे हैं और सुरक्षा बल फंसे हुए लोगों की आवाजाही में सहायता कर रहे हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि बीते 2 दिनों में कोई हिंसा नहीं हुई और क्रमिक रूप से स्थिति सामान्य होती जा रही है। रविवार और आज सोमवार को कुछ घंटों के लिए कर्फ्यू में ढील दी गई। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील द्वारा जताई गई कुछ चिंताओं के सिलसिले में मेहता ने कहा कि उनका संज्ञान लिया जाएगा और अधिकारी आवश्यक कदम उठाएंगे।
हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने मेहता की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए मणिपुर हिंसा से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई 17 मई के लिए निर्धारित कर दी और केंद्र तथा राज्य को उस वक्त तक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान पीठ ने सवाल किया कि कितने राहत शिविर स्थापित किए गए हैं और वहां कितने लोगों को रखा गया है। पीठ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि इन राहत शिविरों में किस तरह के इंतजाम किए गए हैं क्योंकि ए मानवीय मुद्दे हैं। पीठ ने हिंसा के चलते विस्थापित हुए लोगों के बारे में भी पूछा।
न्यायालय मणिपुर की स्थिति संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इनमें, सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक डिंगंगलुंग गंगमेई द्वारा दायर याचिका भी शामिल है, जिसमें मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है।
गंगमेई 'हिल्स एरिया कमेटी' के अध्यक्ष भी हैं। याचिकाओं में एक आदिवासी संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका भी शामिल है, जिसमें हिंसा की विशेष जांच टीम से जांच कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। चुराचांदपुर जिले में मेइती समुदाय के लोगों और जनजातीय लोगों के बीच बीते बुधवार को झड़पें शुरू हुई थीं।
मणिपुर के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों और इंफाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मेइती समुदाय के लोगों के बीच हिंसक झड़पों में अब तक 50 से अधिक लोग मारे गए हैं। मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की उसकी मांग को लेकर यह हिंसा भड़की थी। हिंसा के कारण 23,000 लोगों ने सैन्य छावनियों और राहत शिविरों में शरण ले रखी है।
उल्लेखनीय है कि जनजातीय लोग 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मेइती समुदाय को आरक्षण दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। उच्च न्यायालय ने समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए राज्य सरकार को चार हफ्तों के अंदर केंद्र को एक सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था।
मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय की हिस्सेदारी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासियों (नगा और कुकी) की हिस्सेदारी आबादी में करीब 40 प्रतिशत है तथा वे मुख्य रूप से पर्वतीय जिलों में रहते हैं।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta