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हमने नीड़ छीन लिए, 'नीड' की उपेक्षा की... आखिर कैसे आएंगे पंछी...

हमने नीड़ छीन लिए, 'नीड' की उपेक्षा की... आखिर कैसे आएंगे पंछी... - special on world environment day
जब बात पर्यावरण की है तो हमें ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। इंदौर में वह वक्त भी था जब सड़क किनारे बड़े-बड़े वृक्ष हुआ करते थे। ये वृक्ष पंछियों को ठिकाना देते थे तो पंथियों को भी धूप और बारिश से बचाते थे, लेकिन अब बड़े पेड़ शायद ही कहीं बचे होंगे। ज्यादातर पेड़ विकास की भेंट चढ़ गए। आज शहर में न चिड़िया दिखाई देती है न ही कौअे। आमतौर पर श्राद्ध के दिनों में ही हमें कौआ याद आता है, बाकी दिनों में कोई मतलब नहीं रहता। 
 
दरअसल, हमने उनके नीड़ छीन लिए। उनके भोजन-पानी का खयाल नहीं रखा। किसी समय घरों में आम, जामुन, अमरूद के पेड़ हुआ करते थे, उन पर पक्षी चहचहाते थे। लेकिन, अब वे पेड़ कट गए और बढ़ती जनसंख्या के चलते वहां इंसानों के आशियाने बन गए। 
 
दूसरी ओर मोबाइल टॉवर के रेडिएशन का पक्षियों पर नकारात्मक असर हुआ तो मोबाइल की रिंगटोन ने पक्षियों को हमसे 'भावनात्मक' रूप से भी दूर कर दिया। याद कीजिए 1950 की फिल्म 'आंखें' का गाना- मोरी अटरिया पे कागा बोले मोरा जीया डोले कोई आ रहा है... आज जब सीधे मोबाइल से बात हो जाती है तो हमें क्या फर्क पड़ता है कि कागा अटरिया पर बोले या न बोले।

या फिर राजस्थानी का एक लोकगीत है- उड उड रे म्हारा काला से कागला, जद म्हारा पीव जी (पिया) घर आवै...अब किसे फुर्सत है कागा को उड़ाने की। कृष्णभक्त कवि रसखान तो यह कहकर कौअे के भाग्य पर रीझ जाते हैं कि काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी। आज पर्यावरण का मुद्दा मध्यप्रदेश या भारत का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का है। 
   
वैदिक पर्यावरणविद आचार्य डॉक्टर संजय देव यजुर्वेद के मंत्र - ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि, की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि वेदों में पर्यावरण संतुलन की बात बहुत सुंदर तरीके से कही गई है। सूर्य और अंतरिक्ष के बीच की परत (ओजोन) में संतुलन हो, अंतरिक्ष, पृथ्वी, अन्न, औषधियों आदि में भी शांति यानी संतुलन की बात कही गई है।
 
डॉ. देव कहते हैं कि शान्तिर्ब्रह्म का तात्पर्य ज्ञान के संतुलन से है। अर्थात ज्ञान भ्रमित न हो, प्रदूषित न हो। जिस तरह से सारे ब्रह्मांड में संतुलन होता है उसी तरह हमारे मन में भी होना चाहिए। पर्यावरण की शुद्धि की शुरुआत व्यक्ति के मन से होती है। उन्होंने कहा कि वैदिक यज्ञ यदि सही विधि से किया जाए तो निश्चित रूप से पर्यावरण की शुद्धि होती है।
पूर्व अपर वन मंडल अधिकारी रमेश बाबू सिद्ध कहते हैं कि हमने कंक्रीट के जंगल खड़े कर लिए हैं, आसपास पेड़ बचे नहीं हैं। पक्षियों के रहवास उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए छाया और भोजन की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। मोबाइल टॉवर रेडिएशन के कारण भी पक्षी हमसे दूर हो रहे हैं।

सिद्ध कहते हैं कि घर की चिड़िया कहलाने वाली गोरैया अब लुप्तप्राय: है, बहुत ही कम दिखाई देती है। किसी समय यह चिड़िया घर के आंगन में फुदकती रहती थी। हमें यदि पक्षियों को अपने करीब लाना है तो उनके लिए नीड़ और भोजन की व्यवस्था करनी होगी। अन्यथा एक वक्त ऐसा भी आ सकता है जब बहुत से पक्षी किताबों में सिमटकर रह जाएंगे।