उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड से सवालों के घेरे में सोशल मीडिया !
क्या उदयपुर के कन्हैयालाल की जिंदगी पर भारी पड़ गया सोशल मीडिया?
भाजपा की पूर्व नेता नुपूर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को लेकर राजस्थान के उदयपुर में हिंदू दर्जी कन्हैयालाल की तालिबानी ढंग से हत्या कर दी गई। कन्हैयालाल की हत्या के बाद हत्यारों ने सोशल मीडिया पर भड़काउ वीडियो भी पोस्ट किया। हत्याकांड और बाद सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होते हुए वीडियो को रोकने किए राजस्थान सरकार को पूरे प्रदेश में इंटरनेट बंद करना पड़ा। सरकार को लोगों से वीडियो नहीं पोस्ट करने की अपील भी करनी पड़ी। वहीं उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में सोशल मीडिया को लेकर अलर्ट जारी करना पड़ा।
दरअसल बीते कुछ दिनों सें देश में जब भी हिंसा की कोई वारदात होती है तो उसके पीछे सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका देखी गई। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि क्या आज सोशल मीडिया हिंसा भड़काने का एक टूल बन गया है? सोशल मीडिया अफवाहों का एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जो सांप्रदायिक सौहार्द पर भारी पड़ने लगा है।
भोपाल में जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. संदीप शास्त्री कहते हैं कि उदयपुर में जो घटना हुई है वह बहुत दुखद औऱ शर्मनाक है। वहीं उदयपुर घटना से जुड़े वीडियो को जिस तरह से सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया उस पर हमको सोचना होगा।
हमें यह सोचना होगा कि हमें क्या दिखना चाहिए क्या नहीं दिखना चाहिए। हमें समाज के दृष्टिकोण से देखना होगा कि किन चीजों को दिखाएं या किसको नहीं दिखाएं। जो व्यक्ति चला गया है उसको दिखा कर क्या हम उसकी मर्यादा (human dignity) की रक्षा करेंगे।
डॉ. संदीप शास्त्री कहते हैं कि लोग अपनी विचारधारा से मेल खाने वाले वीडियो ही देखते है तो इससे ध्रुवीकरण ज्यादा हो रहा है और यह एक संघर्ष का वातावरण बन रहा है और इसमें सोशल मीडिया की एक भूमिका है। वह आगे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर एक नियंत्रण आना चाहिए।
सोशल मीडियो को लेकर स्पष्ट रेगुलेशन होना चाहिए। हम जिस पर रिएक्ट कर रहे है कि क्या वह सत्य है या फेक है उसको चेक करने के लिए फैक्ट चेक जैसे टूल को बढ़ावा देना होगा। जो लोग फॉल्स न्यूज को स्प्रेड कर रहे है या तथ्यों को पूरा दिखाने की बजाए थोड़े-थोड़े हिस्सों को स्प्रेड कर रहे है उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
वहीं वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि उदयपुर की घटना से जुड़े वीडियो को सोशल मीडिया के साथ-साथ जिस तरह से मीडिया में दिखाया गया वह बहुत ही निंदनीय है। इससे एक तरह से ऐसी घटनाओं का महिमामंडन होता है और वह दूसरे लोगों के लिए मॉडल का काम करता है।
सोशल मीडिया पर ऐसी घटनाओं को प्रचारित करना भी एक तरह से उनको प्रेरित करने का काम करता है। दुर्भाग्य से ऐसी घटनाएं जितना दिखाई या प्रचारित की जाएगी उससे समाज में विभाजन ही बढ़ेगा।
सोशल मीडिया के लिए कानून?- सोशल मीडिया पर ऐसी अफवाहें जिसे हिंसा या दंगे भड़के उसे साइबर अपराध माना जाता है। ऐसे कार्य करने वालों को आईटी एक्ट 2008 के तहत साधारण से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। कानून के जानकार कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने के उद्देश्य से अफवाह फैलाते है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 153-A के तहत केस दर्ज किया जा सकता है।
अगर कोई व्यक्ति बोलकर, लिखकर या इशारे से या फिर किसी दूसरे तरीके से अफवाह फैलाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करता तो उसके आईपीसी की धारा 505 के तहत केस दर्ज किया जा सकता है। इसके साथ सोशल मीडिया की मदद से होने वाले अपराध को रोकने के लिए साल 2000 में इनफॉर्मेशन एक्ट बनाया गया।
इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट-2000 की धारा 67 के तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक, भड़काऊ या अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत पैदा करने वाले पोस्ट, वीडियो या तस्वीर शेयर करते है तो तीन साल से आजीवन करावास तक की सजा हो सकती है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते है कि अगर कोई हेटफुल स्पीच देता है तो आईटी एक्ट के साथ-साथ IPC की धारा 153 A के तहत कार्रवाई की जा सकती है। वह कहते हैं कि सोशल मीडिया भ्रामक समाचारों का फैलाने का एक टूल बन गया है और यह एक खतरे की घंटी है।