नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्याय की सुगमता को जीवन की सुगमता जितना ही महत्वपूर्ण बताते हुए न्यायपालिका से शनिवार को आग्रह किया कि वह विभिन्न कारागारों में बंद एवं कानूनी मदद का इंतजार कर रहे विचाराधीन कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया में तेजी लाए।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण और कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने भी यहां अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की पहली बैठक में कानूनी सहायता प्रदान करके विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2020 में प्रकाशित जेल सांख्यिकी भारत रिपोर्ट के अनुसार, जेल में 4,88,511 कैदी हैं, जिनमें से 76 प्रतिशत या 3,71,848 कैदी विचाराधीन हैं।
बैठक में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने भारत की न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग की सराहना करते हुए कहा कि नागरिकों को न्यायपालिका में अत्यधिक विश्वास है और न्यायिक प्रणाली तक पहुंच उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी भी समाज के लिए न्याय प्रदान करना।
प्रधानमंत्री ने कहा, यह आजादी के अमृत काल का समय है। यह ऐसे संकल्प लेने का समय है, जो आगामी 25 साल में देश को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएं। देश की इस अमृत यात्रा में व्यवसाय करने की सुगमता और जीवन की सुगमता जितनी महत्वपूर्ण है, न्याय की सुगमता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने विचाराधीन कैदियों के मानवीय मामलों के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता के बारे में कई बार बात की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने की जिम्मेदारी ले सकते हैं। मोदी ने कहा कि जिला न्यायाधीश विचाराधीन मामलों की समीक्षा संबंधी जिला स्तरीय समितियों के अध्यक्ष के रूप में विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी ला सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने विचाराधीन कैदियों की रिहाई संबंधी मुहिम चलाने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की सराहना की और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से इस प्रयास में और अधिक वकीलों को जोड़ने का आग्रह किया। मोदी ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में कानूनी सहायता के स्थान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसकी महत्ता देश की न्यायपालिका पर नागरिकों के भरोसा से प्रतिबिम्बित होती है।
प्रधानमंत्री ने कहा, किसी समाज के लिए न्याय प्रणाली तक पहुंच जितनी जरूरी है, न्याय दिया जाना भी उतना ही जरूरी है। इसमें न्यायिक बुनियादी ढांचे का भी अहम योगदान है। पिछले आठ साल में देश के न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए तेज गति से काम किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश रमण ने कहा कि जिन पहलुओं पर देश में कानूनी सेवा अधिकारियों के हस्तक्षेप और सक्रिय रूप से विचार किए जाने की आवश्यकता है, उनमें से एक पहलू विचाराधीन कैदियों की स्थिति है। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री और अटॉर्नी जनरल ने मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के हाल में आयोजित सम्मेलन में भी इस मुद्दे को उठाकर उचित किया। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि नालसा विचाराधीन कैदियों को अत्यावश्यक राहत देने के लिए सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है।
न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि वास्तविकता यह है कि आज देश की आबादी का केवल एक छोटा प्रतिशत ही न्याय देने वाली प्रणाली से जरूरत पड़ने पर संपर्क कर सकता है। जागरूकता और आवश्यक साधनों की कमी के कारण अधिकतर लोग मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं।
कानून मंत्री किरण रीजीजू ने कहा कि नालसा ने रिहाई के लिए पात्र विचाराधीन कैदियों की पहचान करने और उनके मामलों को समीक्षा समिति में भेजने की सिफारिश करने के लिए एक अभियान चलाया है। रीजीजू ने कहा कि यह अभियान 16 जुलाई को शुरू हुआ, जिसके तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकारियों को प्रगति पर चर्चा करने के लिए, अतिरिक्त मामलों की समीक्षा करने और जरूरत पड़ने पर उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में जमानत याचिकाएं दायर करने सहित अन्य कदम उठाने के लिए साप्ताहिक आधार पर विचाराधीन समीक्षा समिति (यूटीआरसी) की बैठक करने का निर्देश दिया गया है।
रीजीजू ने कहा कि ये बैठकें 13 अगस्त तक प्रत्येक सप्ताह होंगी, ताकि 15 अगस्त से पहले अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्याय सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत वर्गों तक सीमित नहीं रहना चाहिए और सरकार का कर्तव्य एक न्यायोचित और समतावादी सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत जैसे विशाल देश में जहां जातिगत आधार पर असमानता मौजूद है, प्रौद्योगिकी तक पहुंच का दायरा बढ़ाकर डिजिटल विभाजन को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है।
प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, प्रत्येक नागरिक तक न्याय की पहुंच को बढ़ाना जरूरी है। उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों ने 30 अप्रैल 2022 की तारीख तक 1.92 करोड़ मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए की है। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के पास 17 करोड़ निर्णय लिए गए और लंबित मामलों का डेटा है।
प्रधानमंत्री ने सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय प्रौद्योगिकी में भारत के नेतृत्व को रेखांकित करते हुए जोर दिया कि न्यायिक कार्यवाहियों में और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता। मोदी ने कहा, ई-कोर्ट मिशन के तहत देश में डिजिटल अदालतें शुरू की जा रही हैं। अदालतों ने यातायात उल्लंघन जैसे अपराधों के लिए चौबीसों घंटे काम करना शुरू कर दिया है। लोगों की सुविधा के लिए अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंस संबंधी बुनियादी ढांचे का भी विस्तार किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए एक करोड़ से अधिक मामलों की सुनवाई हो चुकी है। उन्होंने कहा, इससे साबित होता है कि हमारी न्यायिक प्रणाली न्याय के प्राचीन भारतीय मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध होने के साथ ही 21वीं सदी की वास्तविकताओं के अनुसार स्वयं को ढालने के लिए तैयार है। इस दो दिवसीय सम्मेलन में सभी डीएलएसए के बीच एकरूपता लाने और समन्वय स्थापित करने के लिए एकीकृत प्रक्रिया के निर्माण पर विचार किया जाएगा।
देश में कुल 676 जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हैं। इन प्राधिकरणों का नेतृत्व जिला न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जो इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। डीएलएसए और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) के माध्यम से नालसा विभिन्न विधिक सहायता एवं जागरूकता कार्यक्रम कार्यान्वित करता है। डीएलएसए, नालसा द्वारा आयोजित लोक अदालतों को विनियमित करके अदालतों पर बोझ को कम करने में भी योगदान करते हैं।(भाषा)