नई दिल्ली। देश में लोगों की पीट-पीटकर हत्या करने देने की बढ़ती घटनाओं का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि इन घटनाओं के मद्देनजर हमें देश के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा के प्रति सजग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों, बुद्धिजीवियों एवं मीडिया की सजगता ही अंधकार एवं पिछड़ापन की ताकतों के खिलाफ सबसे बड़ा प्रतिरोधक हो सकती है।
उन्होंने नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र को फिर से पेश किए जाने के अवसर पर राजधानी के जवाहर भवन में आज आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा, जब हम अखबारों में पढ़ते हैं या टीवी में देखते हैं कि कानून का पालन या नहीं पालन करने के कारण किसी व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, जब भीड़ का उन्माद बहुत बढ़ जाता है, अनियंत्रित एवं अतार्किक हो जाता है तो हमें थमकर इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम पर्याप्त रूप से सजग हैं।
उन्होंने कहा, मैं चौकसी के नाम पर उपद्रव (विजलांटे) की बात नहीं कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं कि क्या हम सक्रिय रूप से अपने देश के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा के प्रति सजग हैं? मुखर्जी कहा, हम इसे सहन नहीं कर सकते। बुद्धिमत्ता हमसे स्पष्टीकरण मांगेगी कि हम क्या कर रहे थे। मैं भी अपने से यह सवाल करता था जब मैं एक युवा विद्यार्थी के रूप में इतिहास को पढ़ता था।
उन्होंने कहा, निरंतर सजगता ही स्वतंत्रता का मूल्य है। यह सजगता कभी परोक्ष नहीं हो सकती। इसे सक्रिय होना चाहिए। निश्चित तौर पर सजगता इस समय की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने मीडियाकर्मियों एवं पत्रकारों से कहा कि उनका काम कभी खत्म नहीं होता। कभी खत्म नहीं हो सकता, क्योंकि आपके कारण लोकतंत्र का अस्तित्व बरकरार है। लोगों के अधिकार संरक्षित हैं।
उन्होंने कहा, मानवीय गरिमा बरकरार है। गुलामी खत्म हुई है। आपको अपनी सजगता बरकरार रखनी होगी। माफ करें मैं इस शब्द (सजगता) का बार-बार इस्तेमाल कर रहा हूं, क्योंकि मेरे पास कोई उपयुक्त वैकल्पिक शब्द नहीं है। मुखर्जी ने कहा, मेरा मानना है कि नागरिकों की सजगता, बुद्धिजीवियों की सजगता, समाचार पत्रों एवं मीडिया की सतर्कता ही अंधकार एवं पिछड़ापन फैलाने वाली ताकतों के लिए अवरोधक का काम कर सकती हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड अखबार के लिए आदर्श वाक्य दिया था, स्वतंत्रता खतरे में है, इसे पूरी ताकत से बचाया जाना चाहिए। ये शब्द भले ही 1939 में लिखे गए किन्तु इसका महत्व आज तक है।
उल्लेखनीय है कि नेहरू ने नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र को 1938 में शुरू किया था। मुखर्जी ने भारत में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के दौरान हुए विभिन्न युद्धों का जिक्र करते हुए कहा, मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि पुराने तरीके के उपनिवेश के लौटने का खतरा है, किन्तु इतिहास बदलने के साथ साथ उपनिवेशवाद ने विभिन्न तरह के चेहरे धारण किए हैं।
मुखर्जी ने कहा कि आजादी के बाद के 70 साल का महत्व महज आर्थिक विकास या क्षेत्रीय विकास या सांख्यिकी संतोष के लिए नहीं हैं, बल्कि यह इससे बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि 1.30 अरब की आबादी, दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों और सभी प्रमुख नस्लों के लोग यहां एक संविधान के तहत शांति एवं समृद्धि से रह रहे हैं, यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। मुखर्जी ने कहा कि आज हमारा संघर्ष गरीबी, भूख, रोग और असंतुलन जैसे दानवों को पराजित करने का है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के प्रावधान सामाजिक बदलाव के उद्देश्य के लिए भी हैं।
उन्होंने कहा कि यदि हम इतिहास के पन्ने पलटे तो उस समय सांप्रदायिक तनाव बहुत ही चरम स्तर पर था। भारत के अंतिम गवर्नर जनरल लार्ड माउंट बेटन ने देश की पश्चिमी सीमा पर काफी सेना लगाई लेकिन सांप्रदायिक घटनाओं और रक्तपात को रोका नहीं जा सका, किन्तु देश की पूर्वी सीमा पर एक मानवीय सीमा बल यानी महात्मा गांधी ने गांव-गांव जाकर लोगों को समझाया और हिंसा नहीं होने दी।
समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, नेशनल हेराल्ड की प्रकाशक कंपनी के अध्यक्ष एवं कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, कांग्रेस के विभिन्न वरिष्ठ नेता, मीडिया जगत की प्रमुख हस्तियां, प्रियंका गांधी सहित गणमान्य लोग उपस्थित थे। (भाषा)